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कांग्रेस के 'बेअसर जितिन' क्या उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में डालेंगे असर?

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए जैसे-तैसे ताकत जुटाना चाह रही कांग्रेस से एक और दिग्गज नेता जितिन प्रसाद ने विदा ले ली। भाजपा का दामन थामते ही जितिन भी कांग्रेस की नजर में 'प्रभावहीन' हो गए। तर्क है कि इतने प्रभावशाली होते तो दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव क्यों हारते? हालांकि पार्टी के तजुर्बेदार नेता मानते हैं कि जिन जितिन को कांग्रेस ने यूपी के 'गोदाम' में कैद करना चाहा, वह भाजपा के साथ मैदान में ठीकठाक असर दिखा सकते हैं। इसके अलावा रुहेलखंड क्षेत्र के बड़े सियासी परिवार से नाता टूटना पार्टी की अंतर्कलह का संदेश जनता में देगा और सवर्ण, खासकर ब्राह्मणों को कांग्रेस से जोड़ने की मुहिम को भी तगड़ा झटका लग सकता है।

शाहजहांपुर और धौरहरा लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे जितिन प्रसाद मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रहे। वह 2014 व 2019 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव भले ही हार गए हों, लेकिन शाहजहांपुर, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, हरदोई आदि क्षेत्रों में वह कांग्रेस के चेहरे थे। वजह यह कि उनके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शामिल रहे।


प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का जिम्मा संभाल चुके जितेंद्र प्रसाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सचिव भी रहे। गांधी-नेहरू परिवार के भरोसेमंद इस परिवार की पहचान क्षेत्र में खांटी कांग्रेसी के रूप में थी। उसी सियासी विरासत को जितिन आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन प्रियंका वाड्रा द्वारा प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभालने और प्रदेश नेतृत्व में बदलाव के बाद से जितिन के लिए अस्तित्व बचाने का संकट भी नजर आने लगा।


इसके बावजूद बीते डेढ़ वर्ष से उन्होंने अलग तरीके से खुद को सक्रिय कर लिया था। वह ब्राह्मण चेतना परिषद बनाकर प्रदेश भर का दौरा कर रहे थे। ब्राह्मणों को भाजपा के खिलाफ और कांग्रेस के समर्थन में एकजुट करने का प्रयास कर रहे थे। उनके करीबी रहे कांग्रेसी नेता तर्क देते हैं कि भाजपा से नाराजगी के चलते जितिन के जरिये यदि पुराना ब्राह्मïण वोट कांग्रेस में लौटता तो 2022 में निश्चित ही लाभ होता। साथ ही रुहेलखंड में अब कांग्रेस के पास इस कद का कोई नेता नहीं है। हालांकि उनके पार्टी से मोहभंग के कयास तभी से जोर पकड़ने लगे थे, जब उन्होंने 23 असंतुष्ट नेताओं के समूह में शामिल होकर राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी में सुधार की सलाह दी थी।


उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का स्वर्णिम काल देख चुके पूर्व विधायक भूधर नारायण मिश्र कहते हैं कि जितिन प्रसाद का अपना राजनीतिक योगदान कुछ नहीं था, इसलिए प्रत्यक्ष रूप से उनके जाने का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी राजनीति में संदेश का बड़ा महत्व होता है। सिंधिया हों या प्रसाद, यह पार्टी छोड़कर जाने वाले नेता नहीं थे। राष्ट्रीय नेतृत्व की कमी है कि यह गए। इससे संदेश गया कि राहुल गांधी के भरोसेमंद दिग्गज नेता ही साथ छोड़कर भाग रहे हैं। पार्टी में संवादहीनता है, अंतर्कलह है।


अन्नू टंडन और जितिन सहित 21 नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस : 2019 में प्रियंका ने यूपी की कमान बतौर प्रभारी संभाली। 450 सदस्यों की पुरानी प्रदेश कमेटी को भंग कर नए सिरे से गठन किया। अध्यक्ष सहित 49 पदाधिकारियों की कमेटी बनाई, जिसमें सारे नए चेहरे थे। पुराने नेता हाशिए पर आ गए। दो बार विस्तार देकर संख्या करीब सौ कर दी गई। कुछ पुराने नेताओं को समायोजित करने का भी प्रयास किया। पार्टी सूत्रों ने बताया कि उनमें से अब तक 19 पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके अलावा उन्नाव की जानी-मानी नेता रहीं पूर्व सांसद अन्नू टंडन सपा में शामिल हो चुकी हैं और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी चले गए।

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