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वाराणसी में मछुआरों के जाल में फंसा रंग-बिरंगा तिलहारा कछुआ, देश में बची 13 दुर्लभ प्रजाति में है शामिल

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. गंगा में 20 साल बाद रविवार को दुर्लभ प्रजाति का कछुआ तिलहारा मछुआरों के जाल में फंसा।  पकड़े गए रंग-बिरंगे कछुओं का वजन 80 ग्राम था। इसके शरीर का अधिकांश हिस्सा गुलाबी रंग का था। मछुआरों ने इसकी सूचना गंगा प्रहरी दर्शन निषाद को दी। गंगा प्रहरी की मदद से दुर्लभ प्रजाति के इस कछुए को गंगा में छोड़ा गया।

रविवार को वाराणसी शहर से 10 किलोमीटर दूर मुगलसराय स्थित कुंडा कला गांव में मछली मारते समय जाल में रंग-बिरंगा कछुआ फंस गया। मछुआरों ने इसकी सूचना दर्शन निषाद को दी। दर्शन ने बताया कि यह कछुआ आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल है। 20 साल बाद यह कछुआ गंगा में नजर आया है। यह गंगा के ऊपरी, मध्य और निचले हिस्सों में पाए जाते हैं।

इस प्रजाति के कछुओं का वजन 35 से 40 किलोग्राम तक होता है। इसकी पीठ ठोस छतनुमा होती है जिस पर नुकीली कील की तरह से संरचना बनी होती है। यह जलीय वनस्पतियों को खाता है और बड़ी नदियों में ही पाया जाता है। इन्हें पकड़ना कानूनन अपराध है। इनकी संख्या को बढ़ाया जा रहा है ताकि गंगा की स्वच्छता बनी रहे। यह अधिकांश रेत में रहते हैं। 

भारत में अब कछुओं की महज 13 प्रजातियां

देहरादून स्थित वन्य जीव संस्थान से कछुआ संरक्षण का प्रशिक्षण प्राप्त दर्शन निषाद ने बताया कि दुनिया में कुल 235 प्रकार के कछुए मिलते हैं, इनमें से भारत में 35 प्रजातियां देखी जा चुकी हैं, वहीं वर्तमान में केवल 13 प्रजातियां ही मिलती हैं। कछुए गंगा में उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच में ही पाए जाते हैं। वहीं गंगा में डॉल्फिन इस समय काफी बच्चे दे रही हैं, जिससे इनकी भी संख्या में बढ़ोतरी होनी तय है।

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