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‘पोटा पर सोटा’...ने डाला आग में घी, गिर गई मायावती सरकार, राजा भैया पर पोटा लगाने पर मायावती से छिड़ा था विवाद

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में सियासी वर्चस्व के लिए किस तरह और किस हद तक सियासी चौसर बिछाई जाती रही है, उसकी झलक 2002 में दिखने लगी। किस्सा शुरू होता है भाजपा-बसपा में तनातनी के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया को गिरफ्तार करने और बाद में उनपर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) लगाए जाने से। भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार ने ‘पोटा पर चलेगा सोटा’ जैसा बयान देकर मायावती को चेताया। झगड़ा बढ़ा और भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। मायावती की सरकार गिर गई। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने।

इस घटना को ठीक से समझने के लिए एक नजर 1996-97 के घटनाक्रम पर डालना जरूरी है। भाजपा से समझौते के मुताबिक मायावती ने जब छह महीने का कार्यकाल पूरा होने पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने से मना कर दिया तो भाजपा व बसपा में विवाद हुआ। मायावती ने काफी मुश्किल से पद छोड़ा और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। पर, मायावती ने कल्याण सरकार से बसपा के समर्थन वापस लेने का एलान कर दिया। राजा भैया उन प्रमुख लोगों में शामिल थे जिन्होंने बसपा, कांग्रेस सहित अन्य कुछ दलों के विधायकों को तोड़कर भाजपा की सरकार को समर्थन दिलाया था। उन्होंने मायावती के विरोध में कई बयान भी दिए थे। इससे मायावती उनसे पहले से ही खुन्नस खाए बैठी थीं।

बढ़ती चली गई नाराजगी

भाजपा के कुछ नेताओं के दबाव में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने 2002 में बसपा से गठबंधन करके मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमति तो दे दी, पर भाजपा का एक धड़ा इसको लेकर सहज नहीं था। इस धड़े का तर्क था कि मायावती जिस तरह अपना एजेंडा चलाती हैं उससे भाजपा का नुकसान होता है। कलराज मिश्र व राजनाथ सिंह जैसे नेता भी विपक्ष में बैठने का तर्क दे रहे थे। पर, भाजपा हाईकमान के कहने पर मायावती के नेतृत्व में सरकार तो बन गई, लेकिन पहले दिन से ही तनातनी भी शुरू हो गई। मायावती ने भाजपा की इच्छा होते हुए भी कुछ लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। विवाद बढ़ने पर उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि भाजपा ने सूची में जिनके नाम दिए थे उन सबको मंत्री बना दिया। बहरहाल, मंत्री नहीं बन पाने से भाजपा के कई विधायक नाराज थे।

राजा भैया ने की मायावती की बर्खास्तगी की मांग

मंत्रिमंडल में राजा भैया को भी जगह नहीं मिली थी। तभी ताज कॉरिडोर निर्माण में घोटाले के प्रकरण के चलते भाजपा व मायावती के बीच रिश्ते और बिगड़ने लगे। इसी बीच राजा भैया और उनके साथ भाजपा सहित लगभग 20 विधायकों ने राजभवन जाकर तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री को पत्र देकर मायावती के पास बहुमत नहीं होने का दावा किया और उन्हें बर्खास्त करने की मांग की। ऐसा माना जाता है कि मायावती इससे और चिढ़ गईं।

पूरण सिंह बुंदेला चले गए मायावती के पाले में

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र भट्ट बताते हैं कि राज्यपाल को पत्र देकर मायावती को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने के पीछे अमर सिंह थे, जो शुरू से ही राजपूत विधायकों की लामबंदी करके राजनीति में अपना महत्व बनाए रखने के माहिर थे। मायावती ने राज्यपाल से बर्खास्तगी की मांग करने वालों में शामिल भाजपा विधायक पूरण सिंह बुंदेला पर दबाव डालकर उन्हें अपने पाले में कर लिया। बुंदेला ने हजरतगंज कोतवाली में राजा भैया पर अपहरण और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाते हुए शिकायत की।

पुलिस ने 2 नवंबर 2002 की रात में राजा भैया को गिरफ्तार कर लिया। मायावती के निर्देश पर राजा भैया के प्रतापगढ़ के भदरी रियासत स्थित आवास पर छापा पड़ा। वहां से कई हथियार बरामद किए गए। राजा भैया, उनके पिता उदय प्रताप और चचेरे भाई अक्षय प्रताप पर पोटा लगा दिया गया। राजा भैया के पिता के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद से काफी अच्छे रिश्ते थे। इसी वजह से विनय कटियार ने पोटा हटाने और राजा उदय प्रताप को रिहा करने की मांग की थी। मायावती के इनकार करने पर रिश्ते बिगड़ते चले गए।

अमर सिंह ने अटल सरकार से लगाई गुहार

अमर सिंह ने दिल्ली में राजपूतों का बड़ा जमावड़ा कर मायावती सरकार के खिलाफ हमला बोला। साथ ही राजा भैया पर से पोटा हटाने के लिए केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर दबाव डाला। अमर सिंह का तर्क था कि पोटा का इस्तेमाल राजनीतिक कारणों से किया गया है।

मुलायम ने सरकार बनते ही हटा दिया पोटा

भाजपा के परदे के पीछे से दिए जा रहे समर्थन से मुलायम सिंह यादव ने 28 अगस्त 2003 को मुख्यमंत्री पद संभाला। सरकार बनने में जिन विधायकों के समर्थन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उसमें राजा भैया के कई समर्थक थे। मुलायम जानते थे कि राजा भैया पर मायावती के गुस्से का कारण राज्यपाल से सरकार की बर्खास्तगी की मांग है, शायद इसीलिए मुलायम ने सरकार बनते और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के आधा घंटा के भीतर राजा भैया और उनके पिता व चचेरे भाई पर से पोटा हटाने का आदेश दे दिया। मुलायम सिंह ने उन्हें अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाते हुए खाद्य-रसद विभाग सौंप दिया।

भाजपा सरकार के खिलाफ ही मुखर हो उठे संत

वर्ष 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अयोध्या में राममंदिर में हो रही देरी से संत और विहिप नेता काफी नाराज थे। वक्त 2002 विधानसभा चुनाव का था। मुख्यमंत्री थे राजनाथ सिंह। संतों और विहिप नेताओं ने मंदिर निर्माण पर भाजपा की चुप्पी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए 90 दिन के श्रीराम नाम जप महायज्ञ और उसकी पूर्णाहुति पर 15 मार्च को शिलाएं अयोध्या ले जाने की घोषणा कर दी। केंद्र सरकार ने संतों को समझाया। पर, उन्होंने बात नहीं मानी। संतों व विहिप ने देशभर से रामसेवकों को अयोध्या आने का आह्वान किया। गुजरात से आए रामसेवक जब वापस जा रहे थे तो गोधरा कांड हो गया। इस कांड से गुजरात में दंगे भड़क उठे। इस घटनाक्रम का चुनाव में भाजपा पर प्रतिकूल असर पड़ा। चुनाव नतीजे आए तो किसी दल को बहुमत नहीं मिला। नतीजतन उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। सख्ती और बढ़ गई।

परमहंस व सिंघल ने सौंपीं दो शिलाएं : रामजन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष महंत रामचंद्रदास परमहंस नाराज हो गए। उन्होंने एलान किया कि 15 मार्च 2002 से यदि मंदिर का निर्माण शुरू नहीं हुआ तो वे विषपान कर जान दे देंगे। साथ ही अनशन पर बैठ गए। प्रधानमंत्री कार्यालय तक सतर्क हो गया। परमहंस को मनाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से विशेष दूत के रूप में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को अयोध्या भेजा गया। उन्होंने बातचीत कर मंदिर निर्माण के लिए प्रतीकात्मक तौर पर परमहंस और अशोक सिंघल से दो शिलाएं स्वीकार कर बीच का रास्ता निकाला।

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