योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने से पड़ेगा 60 सीटों पर सीधा असर, जानें कैसे
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से विधानसभा चुनाव लडऩे का सीधा असर तीन मंडलों की लगभग 60 सीटों पर होगा। पार्टी रणनीतिकारों के मुताबिक योगी के अयोध्या से चुनाव लडऩे के साथ ही रामनगरी अपने साथ सटे जिलों के साथ पूरे प्रदेश को एक बड़ा चुनावी संदेश देगी। उनके आने से अयोध्या समेत बस्ती और देवीपाटन मंडल की लगभग 60 सीटों पर प्रखर हिंदुत्व विपक्ष की राह रोकेगा।
राममंदिर आंदोलन के प्रति योगी आदित्यनाथ का समर्पण और मुख्यमंत्री बनने के बाद 30 बार से अधिक रामनगरी आना बताता है कि उनके लिए इस नगरी की महत्ता क्या है। जाहिर सी बात है कि प्रदेश का चुनाव ही जब योगी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है तो जहां से वह चुनाव लड़ेंगे वह स्थान लड़ाई का केंद्र बिंदु होगा।
जमीनी तैयारियों की बात करें तो उनके चुनाव के लिए कार्यालय की खोज शुरू हो गई है। भाजपा नेताओं के मुताबिक उनके चुनाव लडऩे से हिंदुत्व का स्वर न केवल शिखर तक मुखर होगा, बल्कि भाजपा अयोध्या, काशी, मथुरा का संदेश देने में भी कामयाब रहेगी। हाल ही में उनके ओएसडी संजीव सिंह ने अयोध्या की चारों मंडल इकाइयों के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं से भेंट भी की थी। निर्वाणी अनी अखाड़े के श्री महंत धर्मदास कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यहां विधानसभा का चुनाव लडऩा निश्चित ही रामनगरी की गरिमा के अनुरूप है।
24 साल बाद भाजपा जीत सकी थी विधानसभा की पांचों सीटें : वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो दशक का सूखा समाप्त करते हुए जिले की पांचों विधानसभा सीटें जीतीं थी। इससे पहले 1991 के चुनाव में भाजपा ने पांचों सीटों पर जीत प्राप्त की थी।
भगवा दुर्ग की सियासी किलेबंदी में जुटे गुजराती रणनीतिकार : यहां की सभी विस सीटों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के गृह राज्य के भाजपा नेताओं को बतौर पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। गुजरात के मणिनगर से विधायक सुरेश पटेल को गोसाईंगंज भेजा गया है। अमराईबाड़ी के विधायक जगदीश पटेल को अयोध्या का जिम्मा दिया गया है। व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक विजय पुरोहित को बीकापुर तथा मनीष पटेल को रुदौली की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसी तरह मिल्कीपुर में भाजपा नेता सनी शाह को भेजा गया है।
गैर भाजपाई दलों को भी लुभा रही अयोध्या : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पहले रामनगरी से दूरी बनाए रखने वाले गैर भाजपाई दल भी यहां के आकर्षणपाश में बंधे नजर आ रहे हैं। राजनीति का वह तबका भी श्रीराम और रामनगरी की ओर उन्मुख हुआ है, जो अपनी आस्था अर्पित करने में संकोच करता रहा है। इनमें उन दलों के भी नेता हैं, जो भाजपा को अयोध्या के नाते ही सांप्रदायिक बताते रहे थे।