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पति सलाखों के पीछे, पत्नियां चुनावी जंग में सुहाग का वास्ता देकर जनता से मांग रहीं वोट

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश की अठारहवीं विधान सभा का चुनाव कई रंगों को अपने में समेटे हुए है। लोकतंत्र के इस संग्राम में कुछ महिला प्रत्याशी ऐसी हैं जो सलाखों के पीछे कैद अपने पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी जंग में उतरी हैं तो कोई पति को सजा सुनाए जाने पर उनके सियासी रसूख को बरकरार रखने के लिए मैदान में आई हैं। पेश है एक रिपोर्ट...

अयोध्या की गोसाईंगंज सीट से भाजपा प्रत्याशी घोषित की गईं आरती तिवारी डबडबाई आंखों और रुंधे गले से अपने सुहाग का वास्ता देकर जनता से वोट मांग रही हैं। वर्ष 2017 में भाजपा के टिकट पर गोसाईंगंज सीट से विधायक बनने के बाद इंद्रदेव तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी ने शादी की। पिछले वर्ष अदालत ने मार्कशीट में कूटरचना के मामले में दोषी पाये जाने पर खब्बू तिवारी को पांच वर्ष की कारावास की सजा सुना दी। इसके बाद उनकी विधान सभा सदस्यता निरस्त हो गई। दबंग छवि वाले खब्बू के सजायाफ्ता होने पर भाजपा ने उनकी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा और अब आरती अपने पति की राजनीतिक विरासत को बचाने और बढ़ाने के लिए मतदाताओं के बीच मशक्कत कर रही हैं।

प्रयागराज के अतीक अहमद का जितना दखल अपराध की दुनिया में रहा है, उतना ही गहरा नाता राजनीति से भी रहा है। बाहुबली अतीक के नाम इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लगातार पांच बार विधायक निर्वाचित होने का रिकार्ड है। वह इस सीट से 1989, 1991 और 1993 में निर्दलीय और 1996 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जीते। 2002 में अतीक ने अपना दल उम्मीदवार के तौर पर इस सीट से जीत का परचम लहराया तो 2004 में वह सपा के टिकट पर फूलपूर सीट से लोक सभा पहुंचे। फिलहाल अतीक अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद हैं और उनके राजनीतिक रसूख को बरकरार रखने के लिए उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन जनता के बीच जिद्दोजहद कर रही हैं। अठारहवीं विधान सभा के चुनाव में वह प्रयागराज पश्चिम सीट से आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की प्रत्याशी हैं।

समाजवादी पार्टी के शासनकाल में गायत्री प्रजापति का सिक्का चलता था। भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के मंत्री के तौर पर उनकी कारगुजारियों की खूब चर्चा हुई। अखिलेश सरकार में उनकी हनक का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि खनन घोटाले में नाम आने पर जब उनकी मंत्रिमंडल से छुट्टी हुई तो जल्द ही परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने सरकार में वापसी की। दुष्कर्म के मामले में गायत्री सलाखों के पीछे हैं तो अमेठी सीट पर उनके राजनीतिक अस्तित्व को बरकरार रखने की लड़ाई उनकी पत्नी महाराजी प्रजापति लड़ रही हैं। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी के तौर पर जनता से वोट मांग रही महाराजी सुबकते हुए लोगों को यह बताने से नहीं चूकतीं कि वह अपने पति के लिए न्याय मांगने उनके बीच आई हैं।

अलीगढ़ शहर में जगह-जगह ऐसे पोस्टर लगे हैं जिनमें इस सीट से भाजपा प्रत्याशी घोषित की गईं मुक्ता राजा के साथ उनके पति संजीव राजा की फोटो भी लगी है। संजीव राजा अलीगढ़ शहर सीट से भाजपा के विधायक हैं। संजीव ने 2017 में यह सीट भाजपा की झोली में डाल कर भगवा दल के लिए यहां 25 वर्ष पुराना सूखा खत्म किया था। पुलिसकर्मी से मारपीट के मामले में संजीव को दो साल की सजा सुनाई गई है। हालांकि वे जेल में नहीं हैं। इसके खिलाफ संजीव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है लेकिन भाजपा ने अब तक गृहिणी की भूमिका निभाती आईं उनकी पत्नी मुक्ता को प्रत्याशी बनाया है। पति की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए मुक्ता घर की देहरी लांघकर लोगों के बीच हैं।

बहन लड़ रही भाई के लिए लड़ाई : एक ओर जहां पत्नियां अपने सजायाफ्ता पति की राजनीतिक विरासत को संजोने के लिए चुनावी जंग में उतरी हैं, वहीं प्रदेश की सर्वाधिक चर्चित सीटों में से एक कैराना विधान सभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी और मौजूदा विधायक नाहिद हसन के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए उनकी बहन इकरा हसन रात-दिन एक किये हुए हैं। नाहिद गैंगस्टर एकट के तहत जेल में हैं। सपा ने उन्हें फिर से प्रत्याशी बनाया तो उनका पर्चा खारिज होने की आशंका में इकरा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया। सपा प्रत्याशी के तौर पर नाहिद का नामांकन वैध पाये जाने के बाद इकरा ने अपना पर्चा वापस तो ले लिया लेकिन जेल में बंद भाई की लड़ाई वह मतदाताओं के बीच लड़ रही हैं।

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