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मजबूत होगा योगी का बुलडोजर, अखिलेश यादव के खिलाफ बगावत को मिलेगी हवा? MLC चुनाव नतीजों के क्या हैं मायने

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक महीन के अंतराल पर एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में इतिहास रच दिया है। विधानसभा में लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल करने के बाद भगवा दल ने पहली बार विधान परिषद में बहुमत हासिल कर लिया है। भाजपा ने इस चुनाव में कुल 36 में से 33 सीटों पर जीत हासिल की है तो समाजवादी पार्टी (सपा) को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। सपा एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई है।

विधान परिषद चुनाव के नतीजे कई मायनों में बेहद खास हैं और आने वाले समय में यूपी की राजनीति पर इसका असर दिखाई देगा। भाजपा को पहली बार विधान परिषद में बहुमत मिल जाने से योगी सरकार के लिए रास्ता आसान हो गया है। अब कोई भी कानून बनाने के लिए भाजपा को विपक्ष के समर्थन की आवश्यकता नहीं रह गई है। 100 में से 64 सीटों पर कब्जा होने के बाद योगी सरकार अब दोनों सदनों से किसी भी कानून को आसानी से पारित करा सकती है।

अखिलेश के खिलाफ बढ़ेंगे बगावत के सुर? 

विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी में हाहाकार का सामना कर रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। पहले चाचा शिवपाल यादव और फिर आजम खान के खेमे की ओर से नाराजगी जाहिर किए जाने के बाद अब सपा अध्यक्ष के खिलाफ विरोध के सुर तेज हो सकते हैं। 

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गढ़ में सेंध से बढ़ेगी चिंता

समाजवादी पार्टी का पश्चिम से पूरब तक सूपड़ा साफ हो गया है। खास बात यह है कि सपा के सबसे बड़े गढ़ इटावा-फर्रुखाबाद में भी साइकिल पंक्चर हो गई है। दूसरी तरफ भाजपा को भी वाराणसी में करारी हार का सामना करना पड़ा है। यह बात सही है कि पिछले 24 साल से बृजेश सिंह एमएलसी चुनाव में यह सीट जीतते आ रहे हैं, लेकिन भाजपा यहां सपा से भी पिछड़ गई है। इससे भाजपा की कुछ चिंता जरूर बढ़ सकती है।

लोकसभा चुनाव के नतीजों पर असर?

विधानसभा चुनाव और विधान परिषद चुनाव के बाद अब सभी दल 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटेंगे। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, इस चुनाव का लोकसभा चुनाव पर कोई सीधा असर तो नहीं होगा, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इसकी भूमिका जरूर होगी। चूंकि इस चुनाव में स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने वोट डाला था और ताजा नतीजों ने उन पर भाजपा की पकड़ को साबित किया है, ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा का मनोबल बढ़ेगा तो वहीं सपा को अपने काडर की निराशा दूर करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। 

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