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शादी की रस्में होंगी फिर फेरे होंगे, लेकिन नहीं होगी दुल्हन, खुद से शादी करेंगे कागजों में मृत संतोष

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. सुनने में ये अजीब लगेगा। आश्चर्य भी होगा लेकिन एक युवक की जिद है कि वह 11 जून को अपने आप से शादी करेगा। पूरे हिंदू रीति रिवाज की तरह रस्में होंगी, फेरे होंगे। बस दुल्हन नहीं होगी। यह व्यवस्था को आईना दिखाने का उनका प्रयास है। वैसे सोलोगैमी के लिए क्षमा बिंदु नामक महिला भी लगातार खबरों में बनी हुई। खुद से शादी करने वालों को सोलोगैमी कहा जाता है। संतोष मूरत सिंह भी इसी दिशा में अग्रसर है। कागज में खुद को जीवित करने के लिए आजमगढ़ में मृतक लालबिहारी ने भी काफी प्रयास किए थे जाे चर्चा में रही।

कुछ वर्षों पूर्व संतोष मूरत सिंह को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था। तब से वह लगातार अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए कुछ न कुछ अजब-गजब करते रहते हैं। सोमवार को जिला मुख्यालय पर मुलाकात में उसने बताया कि मैं संतोष मूरत सिंह अभी भी जिंदा हूं। 11 जून को 11 बजे चौबेपुर थाने में स्थित मंदिर में स्वयं से विवाह करूंगा। मुझे जीते जी मृत घोषित कर दिया गया है। अब न्याय की उम्मीद बेमानी है। इसलिए आत्म स्वीकृति के लिए मैं एकल विवाह करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। प्रशासन ने मेरे साथ अन्याय किया है।

सोलोगैमी का मतलब

असल में सोलोगैमी का मतलब है किसी व्यक्ति का खुद से ही शादी कर लेना। सोलोगैमी को ओटोगैमी भी कहते हैं. सोलोगैमी को अपनाने वालों का कहना है कि यह खुद का मूल्य समझने और खुद से प्यार करने की तरफ एक कदम है. इसे सेल्फ मैरिज भी कहा जा सकता है।

आजमगढ़ के लालबिहारी 'मृतक'

आजमगढ़ के लालबिहारी को जिंदा रहते हुए भी कागजों में मृत घोषित कर दिया गया। तहसील व जिला प्रशासन को कौन कहे, प्रदेश व केंद्र की सरकार ने भी कोई तवज्जो नहीं दी। ऐसे में 'मरता क्या न करता' की कहावत को चरितार्थ किया 'मृतक' संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालबिहारी 'मृतक' ने। उनके कागजों में जिंदा हुए 28 साल हो गए। वे अपना 25वां मृतक-पुनर्जन्म दिवस 2019 को 30 जून को मनाया था।

आजमगढ़ के सदर तहसील अंतर्गत अमिलो मुबारकपुर के लाल बिहारी पुत्र स्व. चौथी का जन्म छह मई 1955 में ग्राम खलीलाबाद, तहसील निजामाबाद में जन्म हुआ था। न्यायालय नायब तहसीलदार तहसील सदर ने 30 जुलाई 1976 को मृत घोषित कर दिया। चचेरे भाईयों के नाम जमीन व मकान दर्ज कर दिए थे। 18 वर्ष संघर्ष करने के बाद 30 जून 1994 को जिला प्रशासन ने तहसील सदर के अभिलेखों में पुन: नाम दर्ज कर जीवित कर दिया है। इसी के बाद राष्ट्रीय मृतक संघ की स्थापना की। (मीडिया इनपुट्स के साथ)

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