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कहानी: वापसी

पूनम ने सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर दिया था. और करती भी क्या. उस के दिन की शुरुआत रोज ऐसे ही दादी मां के तीखे शब्दों से होती थी.

आंगन में तुलसी के चबूतरे पर लगी अगरबत्ती की खुशबू ने पूरे घर को महका दिया था. पूनम अभीअभी पूजा कर के रसोईघर में गई ही थी कि दादी मां ने रोज की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया था, “अरी ओ पूनम, पूजापाठ का ढकोसला खत्म हो गया तो चायवाय मिलेगी कि नहीं.


“ऐसे भी कौन सा सुख दिया है भगवान ने… मेरे हंसतेखेलते परिवार की सारी खुशियां छीन लीं,” बोलते हुए दादी मां ने गुस्से से अपनी भौएं सिकोड़ ली थीं.


पूनम ने रसोईघर में से झांकते हुए कहा, “चाय बन गई है दादी मां, अभी लाती हूं.”


माथे पर बिंदी, दोनों कलाइयां कांच की चूड़ियों से भरी हुईं, लाल रंग के सलवारकमीज में पूनम किसी नई दुलहन सी दिख रही थी.


दादी मां को चाय दे कर पूनम मुड़ी ही थी कि उन्होंने फुसफुसाना शुरू कर दिया, “आदमी का तो कुछ अतापता नहीं है… जिंदा भी है कि नहीं, फिर भी न जाने क्यों इतना बनसंवर कर रहती है…”


पूनम ने सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर दिया था. और करती भी क्या. उस के दिन की शुरुआत रोज ऐसे ही दादी मां के तीखे शब्दों से होती थी.


दादी मां को चाय देने के बाद पूनम अपने ससुर को चाय देने के लिए उन के कमरे में जाने लगी, तो उन्होंने उसे आवाज दे कर कहा, “पूनम बेटा, मेरी चाय बाहर ही रख दे, मैं उधर ही आ कर पी लूंगा.”


“जी पापा,” बोल कर पूनम वापस चली आई थी.


पूनम के ससुर शशिकांतजी रिटायर्ड आर्मी आफसर थे. उन का बेटा मोहित भी सेना में जवान था. पूनम मोहित की पत्नी थी. 3 साल पहले ही मोहित और पूनम का ब्याह हुआ था और ब्याह के 2-4 दिन बाद ही मोहित को किसी खुफिया मिशन पर जाने के लिए सेना में वापस बुला लिया गया था.


इस बात को 3 साल बीत चुके थे, पर अब तक मोहित वापस नहीं लौटा था और न ही उस की कोई खबर आई थी, इसलिए फौज की तरफ से उसे गुमशुदा घोषित कर दिया गया था.


मोहित के लापता होने की खबर से शशिकांतजी की पत्नी को गहरा सदमा लगा था, जिस के चलते वे कोमा में चली गई थीं. डाक्टर का कहना था कि मोहित की वापसी ही उन के लिए दवा का काम कर सकती है.


पूनम को विश्वास था कि मोहित जिंदा है और एक दिन जरूर वापस आएगा. उस के इस विश्वास को कायम रखने के लिए शशिकांतजी पूरा सहयोग देते थे. उन्हें पूनम का पहनओढ़ कर रहना पसंद था. मोहित के हिस्से का लाड़प्यार भी वे पूनम पर ही लुटाते थे.


पूनम ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ था. उस की शादी के कुछ समय बाद ही उस के ससुर ने एक बुटीक खुलवा दिया था.


तब दादी मां ने इस बात का भरपूर विरोध करते हुए कहा था कि समय काटने के लिए घर के काम कम होते हैं क्या. पर शशिकांतजी ने उन की एक न सुनी थी.


सास की बीमारी के बाद घर के कामकाज की पूरी जिम्मेदारी पूनम के कंधों पर आ गई थी. बुटीक के साथ वह घर भी बखूबी संभाल रही थी. पर दादी मां हमेशा उस से नाराज ही रहती थीं. उन्हें पूनम का साजसिंगार करना, गाड़ी चलाना, बुटीक जाना बिलकुल नहीं सुहाता था. वे पूनम को ताने मारने का एक भी मौका अपने हाथों से जाने नहीं देती थीं.


समय बीतता जा रहा था. मोहित की मां की तबीयत में कोई सुधार नहीं था. इस बीच पूनम के मातापिता कई बार उसे अपने साथ घर ले जाने के लिए आए, पर हर बार उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा. पूनम का कहना था कि मोहित वापस आएगा तो उसे यहां न पा कर परेशान होगा और उस के परिवार की जिम्मेदारी भी अब मेरी है. अब ससुराल ही मेरा मायका है.


शशिकांतजी को पूनम की ऐसी सोच और समझदारी पर बहुत गर्व होता था.


एक दिन शशिकांतजी के करीबी दोस्त कर्नल मोहन घर आए और बोले, “शशि, मैं एक प्रस्ताव ले कर तेरे पास आया हूं.”


“कैसा प्रस्ताव?” शशिकांतजी ने पूछा.


इस के बाद उन दोनों दोस्तों ने बहुत देर तक साथ में समय बिताया और बातें कीं, फिर कर्नल मोहन जातेजाते बोले, “मुझे तेरे जवाब का इंतजार रहेगा.”


कर्नल मोहन के जाने के बाद शशिकांतजी काफी दिन तक किसी गहरी सोच में डूबे रहे. पूनम ने कई बार पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने ‘चिंता की कोई बात नहीं’ बोल कर उसे टाल दिया. पर मन ही मन वे पूनम के लिए एक बड़ा फैसला ले चुके थे, जिस की चर्चा पूनम के मातापिता से करने के लिए आज वे उस के मायके जा रहे थे. पूनम इस बात से पूरी तरह बेखबर थी.


पूनम के बुटीक जाते ही शशिकांतजी घर से निकल गए थे. उन्हें अचानक यों देख कर पूनम के मातापिता थोड़े चिंतित हो उठे थे. पूनम के पिताजी ने हाथ जोड़ कर शशिकांतजी से पूछा, “आप अचानक यहां, सब ठीक तो है न?”


“हांहां, सब ठीक है. चिंता की कोई बात नहीं…” शशिकांतजी बोले, “मैं ने पूनम के लिए एक फैसला लिया है, जिस में आप दोनों की राय लेना जरूरी था.”


यह सुन कर पूनम के मातापिता एकदूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे. पूनम की मां ने बड़े ही उतावलेपन से पूछा, “कैसा फैसला भाई साहब?”


शशिकांतजी ने कहा, “पूनम के दूसरे ब्याह का फैसला.”


“यह आप क्या कह रहे हैं… यह कैसे मुमकिन है…” पूनम के पिता ने हैरानी से.


शशिकांतजी बोले, “क्यों मुमकिन नहीं है? मोहित की वापसी अब एक सपने जैसी है. चार दिन की शादी को निभाने के लिए पूनम अपनी पूरी जिंदगी अकेलेपन के हवाले कर दे, ऐसा मैं नहीं होने दे सकता. उस बच्ची के विश्वास पर अपने यकीन की मोहर अब और नहीं लगा सकता. बिना किसी दोष के वह एक अधूरेपन की सजा क्यों काटेगी…”


“पर भाई साहब…” पूनम की मां ने बीच में बोलना चाहा तो शशिकांतजी ने उन्हें रोकते हुए कहा, “माफ कीजिएगा, पर मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.”


इतना कह कर वे आगे बोले, “मैं अपने बेटे के मोह में पूनम के भविष्य की बलि नहीं चढ़ने दूंगा. आज मेरी जगह मोहित भी होता तो पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी उसे कभी स्वीकार नहीं होती.


“आप दोनों ने उसे जन्म दिया है. उस की जिंदगी का इतना बड़ा फैसला लेने के पहले आप को इस की सूचना देना मेरा फर्ज था, इसलिए चला आया वरना पूनम का कन्यादान करने का फैसला मैं ले चुका हूं. अब आज्ञा चाहता हूं.”


शशिकांत जी के जाने के बाद पूनम के मातापिता बहुत देर तक सोचते रहे कि वे अपनी बेटी के भविष्य के बारे में इतनी गहराई से नहीं सोच पाए, पर शशिकांतजी जैसे लोग बहू को बेटी की जगह रख कर अपनी सोच का लैवल कितना ऊपर उठाए हुए हैं. पूनम के दूसरे ब्याह के बारे में सोचते समय मोहित का चेहरा न जाने कितनी बार उन की आंखों के सामने घूमा होगा.


पूनम के मायके से लौटने के बाद शशिकांतजी अपने कमरे से बाहर नहीं आए थे. पूनम शाम की चाय ले कर उन के कमरे में ही चली गई थी. चाय का कप टेबल पर रखते हुए उस ने पूछा, “क्या हुआ पापा? तबीयत ठीक नहीं है क्या?”


“सब ठीक है बेटा,” उन्होंने जवाब दिया और कहा, “आ थोड़ी देर मेरे पास बैठ, तुझ से कुछ बात करनी है.”


“जी पापा,” बोल कर पूनम उन के पास बैठ गई.


शशिकांतजी ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरू किया, “मोहित की गैरमौजूदगी में तू ने इस घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ हम सब को भी बहुत अच्छे से संभाला है. अपने छोटेबड़े हर फर्ज को तू ने प्यार और अपनेपन से निभाया है. इतना ही नहीं, अपनी दादी मां के रूखे बरताव के बाद भी तू कभी उन की सेवा करने से पीछे नहीं हटी. अगर मैं यह कहूं कि मोहित की कमी तू ने कभी महसूस ही नहीं होने दी, तो यह गलत नहीं होगा.


“पर अब नहीं बेटा. मैं चाहता हूं कि मोहित की चंद यादों का जो दायरा तू ने अपने आसपास बना रखा है, उसे तोड़ कर तू बाहर निकले और जिंदगी में आगे बढ़े…”


पूनम ने कहा, “आज अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप? कुछ हुआ है क्या? मोहित की कोई खबर आई क्या? बोलिए न पापा, क्या हुआ है?” पूनम बेचैन हो उठी थी.


शशिकांतजी ने भरे हुए गले से कहा, “कोई खबर नहीं आई मोहित की और न ही आएगी. उस की वापसी की उम्मीद अब छोड़नी होगी हमें.”


पूनम जोर से चिल्लाते हुए बोली, “नहीं पापा, ऐसा मत कहिए…” इतने साल से पति के बिछड़ने का दर्द जो उस ने अपने अंदर दबा कर रखा था, वह आज आंसुओं की धार के साथ बहता जा रहा था.


शशिकांतजी ने पूनम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “आज यह लाचार और बेबस पिता तुझ से कुछ मांगना चाहता है बेटा, मना मत करना. बहुत सोचसमझ कर मैं ने तेरा कन्यादान करने का फैसला लिया है.”


पूनम ने चौंकते हुए कहा, “पापा, आप भी…” कमरे से बाहर जातेजाते वह रुकी और बोली, “आप गलत कह रहे हैं पापा, अगर मोहित की कमी मैं पूरी कर पाती तो मम्मी आज अस्पताल में कोमा में न होतीं, दादी मां को मुझ से इतनी नफरत न होती और आज आप मुझे इस घर से विदा करने की बात नहीं करते,” ऐसा बोल कर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.”


पूनम के जाने के बाद शशिकांतजी सोच में पड़ गए थे कि ‘आप भी’ से पूनम का क्या मतलब था.


इस बात को 8 दिन बीत चुके थे. शशिकांतजी अपने फैसले पर अटल थे. उन के इस फैसले से दादी मां बहुत नाराज थीं और दादी मां ने उन से बात करना बंद कर दिया था. पर उन्होंने हार नहीं मानी थी.


शशिकांतजी एक बार फिर पूनम को समझाने की उम्मीद से उस के बुटीक पहुंच गए थे. उन्हें देखते ही पूनम ने कहा, “अरे पापा, आप यहां कैसे?”


“कुछ नहीं बेटा, शाम की सैर के लिए निकला था…” शशिकांतजी बोले, “सोचा तुझे देख लेता हूं… तेरा काम खत्म हो गया होगा तो साथ में घर चलेंगे.”


पूनम ने कहा, “पापा, मुझे थोड़ा समय और लगेगा.”


“ठीक है…” शशिकांतजी बोले, “मैं बाहर तेरा इंतजार करता हूं, आ जाना.”


थोड़ी देर बाद बुटीक बंद कर के पूनम अपनी कार ले कर बाहर आ गई. शशिकांतजी ने उस से कहा, “आज मैं गाड़ी चलाता हूं.”


कार चलाते हुए शशिकांतजी ने फिर अपनी बात शुरू की और पूनम से कहा, “तू ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया बेटा… और उस दिन तू ने ‘आप भी’ ऐसा क्यों कहा था?”


पूनम ने कहा, “मोहित ने मिशन पर जाने से पहले मुझे कसम दी थी कि अगर वह वापस नहीं लौटा तो मैं उस के इंतजार में अपनी पूरी जिंदगी नहीं निकालूंगी और एक नई शुरुआत करूंगी. उस दिन आप ने भी वही बात कह दी. आप ही की तरह शायद वह भी मुझे अपने से दूर करना चाहता था.”


शशिकांतजी को इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि मोहित के बारे में उन की सोच गलत नहीं थी. वह भी पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी नहीं चाहता था.


शशिकांतजी अपने फैसले पर अब और ज्यादा मजबूत हो गए थे. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “तुझे याद है, कुछ दिन पहले कर्नल मोहन अपने घर आए थे. वे अपने बेटे गौरव के लिए तेरा हाथ मांगने आए थे.


“गौरव की पहली पत्नी का शादी के 4 महीने बाद ही देहांत हो गया था. वह अमेरिका में बहुत बड़ी कंपनी में काम करता है. वह अभी यही है और कुछ दिन में वापस जाने वाला है, इसलिए उन्हें शादी की जल्दी है.


“कर्नल मोहन को मैं बहुत सालों से जानता हूं. वे बेहद सुलझे और समझदार लोग हैं. तू बहुत खुश रहेगी… और तुझे तो गौरव के साथ अमेरिका में ही रहना होगा. इस रिश्ते के लिए हां कह दे बेटा,” शशिकांतजी ने जोर देते हुए पूनम से कहा.


पूनम ने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता था पापा कि आप के लाड़प्यार का कर्ज मुझे एक दिन आप से दूर जा कर चुकाना पड़ेगा.”


शशिकांतजी ने पूनम और गौरव का रिश्ता तय कर दिया. पूनम के मातापिता को भी खबर कर दी गई.


शादी का दिन आ चुका था. बंगले की सजावट शशिकांतजी ने पूनम की पसंद के लाल गुलाब के फूलों से कराई थी.


बरात जैसे ही बंगले के सामने पहुंची तो शशिकांतजी ने सभी का स्वागत किया. थोड़ी देर बाद पूनम की मां उसे मंडप में ले जाने के लिए आईं, तो पूनम ने कस कर अपनी मां के हाथों को पकड़ा और कहा, “मुझ से यह नहीं होगा मां. मेरा मन बहुत घबरा रहा है. पता नहीं क्यों बारबार ऐसा लग रहा है कि मोहित यहीं कहीं आसपास है.


“मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती. यह सब होने से रोक दो मां,” पूनम अपनी मां के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली और बेसुध हो कर जमीन पर गिर पड़ी.


पूनम की मां उस के बेसुध होने की सूचना देने बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि फौज की एक गाड़ी बंगले के बाहर आ कर रुकी है. उस में से सेना के 2 जवान उतरे, फिर उन्होंने हाथ पकड़ कर काला चश्मा पहने एक शख्स को गाड़ी से नीचे उतारा.


विवाह समारोह में आए सभी लोगों की नजरें बड़ी हैरानी से उस शख्स को देख रही थीं. उसे देखते ही शशिकांतजी की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.


“मोहित… मेरे बेटे, तू ने बहुत इंतजार कराया,” बोलते हुए शशिकांतजी ने उसे अपने सीने से लगा कर बेटे की वापसी की तड़प को शांत कर दिया.


पूनम की मां खुशी से भागते हुए अंदर गईं और उन्होंने पूनम के ऊपर पानी के छींटे मारे, फिर जोर से उसे झकझोर कर बोलीं, “उठ बेटा, बाहर जा कर देख… तेरे विश्वास ने आज तेरे सुहाग की वापसी कर ही दी.”


पूनम सभी मर्यादाओं को लांघ कर गिरतीपड़ती भागते हुए बाहर गई और मोहित से जा लिपटी. वह फूटफूट कर रोते हुए बोली, “आखिर आप ने मेरे विश्वास की लाज रख ही ली मोहित.”


शोरगुल की आवाज से दादी मां भी बाहर आ गई थीं और मोहित को देख कर अपने आंसुओं के बहाव को रोक नहीं पाई थीं.


मोहित ने पूनम से कहा, “मेरी वापसी एक अधूरेपन के साथ हुई है पूनम. लड़ाई में मैं अपनी दोनों आंखें गंवा चुका हूं. जिसे अब खुद हर समय सहारे की जरूरत पड़ेगी वह तुम्हारा सहारा क्या बनेगा.”


पूनम ने चिल्लाते हुए कहा, “यह कैसी बात कर रहे हैं आप. हम पूरी जिंदगी के साथी है. हमें एकदूसरे के सहारे और हमदर्दी की नहीं, बल्कि साथ की जरूरत है…” इतना कह कर पूनम ने अपना हाथ मोहित के आगे बढ़ाया और कहा, “आप देंगे न मेरा साथ?”


गौरव इतनी देर से दूर खड़ा हो कर सब देख रहा था. उस ने मोहित का हाथ पकड़ कर अपने हाथों से पूनम के हाथ में दे दिया.


पूनम कर्नल मोहन के पास गई और हाथ जोड़ कर बोली, “मुझे माफ कर दीजिए अंकल. इस घर और मोहित को छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा सकती.”


कर्नल मोहन ने पूनम के सिर पर हाथ रख कर अपना आशीर्वाद दे दिया.

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