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गाजीपुर की बिटिया अपराजिता ने बनाया विश्व रिकॉर्ड, जलपरी मुद्रा को रिकॉर्ड 1 घंटा 27 मिनट 8 सेकेंड तक किया योग

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर की रहने वाली अपराजिता सिंह ने योग में विश्व रिकॉर्ड बनाया है। अपराजिता ने जलपरी मुद्रा को रिकार्ड 1 घंटा 27 मिनट 8 सेकेंड तक करके इंटरनेशनल योगा बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया। इससे पहले यह वर्ल्ड रिकॉर्ड 1 घंटे 5 मिनट का था।
अपराजिता सिंह ने बताया कि योग में उनकी बचपन से ही विशेष रुचि रही है। 12वीं तक की पढ़ाई गाजीपुर से करने के बाद उनका चयन नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फैशन टेक्नोलॉजी में हो गया। वर्तमान में वह भुवनेश्वर में रहकर फैशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें संस्था की ओर से अंतर्राष्ट्रीय योग बुक ऑफ रिकॉर्ड के बारे में बताया गया। आगे की जानकारी अपराजित ने इंटरनेट के माध्यम से ली तो उन्हें मालूम चला की जलपरी मुद्रा में योग करने का रिकॉर्ड 1 घंटा 5 मिनट है। अपराजित ने इसे एक चुनौती के तौर पर स्वीकार किया और वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया।
अपराजित ने मीडिया को बताया कि यह इवेंट 2023 के दिसंबर माह में हुआ था। लेकिन कुछ दिनों पहले गिनीज बुक ऑफ योगा रिकॉर्ड्स की ओर से उन्हें प्रमाण पत्र भेजा गया। उन्होंने यह भी बताया कि सबसे कम समय में पीरियडिक टेबल बनाना और सभी एलिमेंट्स का नाम लिखकर उसके कंठस्थ वाचन (याद कर सुनाना) की प्रतियोगिता में भी उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया है। इसका प्रमाण पत्र भी संबंधित संस्था की ओर से उन्हें जल्द मिल जाएगा। इससे पहले स्कूली दिनों में महज 12 साल की उम्र में अपराजिता ने 37 सेकंड में पीरियाडिक टेबल के सभी एलिमेंट्स के नाम बताने का रिकॉर्ड कायम किया है।
अपराजित ने बताया कि एक छात्रा के तौर पर नए-नए चुनौतियों को स्वीकारना उन्हें रोमांचित करता है। बचपन से ही ड्राइंग और आर्ट क्राफ्ट में शौक होने के कारण उन्होंने फैशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई चुनी। घर वालों का पूरा सहयोग मिला। अपराजित ने बताया कि वह जीवन में बेहतर कर अपने छोटे भाई के लिए एक नजीर बनना चाहती हैं।
अपराजिता के विश्व रिकॉर्ड कायम करने पर उनके पिता सुजीत कुमार सिंह ने बताया कि उन्हें अपनी बेटी अपराजिता पर गर्व है। वह सदैव से इस बात को मानते रहे हैं कि बच्चों को उनके रुचि के विषय को पढ़ने देना चाहिए। मां-बाप को महज अपनी भूमिका उन्हें बेहतर मार्गदर्शन देने तक सीमित रखना चाहिए। करियर का चुनाव बच्चों को स्वयं करने देना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों की मौलिक क्षमता उभरकर बेहतर तरीके से सामने आती है।
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