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सबसे अगल है गाजीपुर की 450 साल पुरानी रामलीला

रामलीला जिसमें असत्य पर सत्य की विजय की वो कहानी लोगों को दिखाई जाती है...
गाजीपुर. रामलीला जिसमें असत्य पर सत्य की विजय की कहानी लोगों को दिखाई जाती , जो त्रेता काल में भगवान राम और रावण के बीच हुई थी।

लोगों में सत्य और असत्य का फर्क समझ में आये, इसके लिये पूरे भारत ही नहीं विदेशों में भी इसका मंचन हर साल किया जाता रहा है। इसी क्रम में गाजीपुर की अति प्रचान रामलीला जो पिछले 450 से 500 साल पूर्व से होती चली आ रही है। इसका मंचन किसी एक स्थान पर ना होकर जनपदकई स्थानों पर अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इसमें सजीवता लाने के लिये वध किये गये सभी पात्रों का पुतला दहन भी किया जाता है। इस रामलीला का आगाज तुलसीदास के शिष्य मेंघादास जी के द्वारा काशी नरेश के रामनगर और गाजीपुर में आरम्भ किया गया था।
जनपद गाजीपुर सिर्फ वीरों की धरती ही नहीं बल्कि धर्म की नगरी भी है। इस जनपद को लहुरी काशी के नाम से भी लोग पुकारते हैं। इसी धरती पर भगवान राम के गुरू विश्वामित्र और परशुराम ने भी जन्म लिया। इसलिये इस जनपद मे राम को मानने वाले और उनके द्वारा किये गये लीलाओं को देखने व सुनने वालो मे काफी श्रद्धा है। इसी श्रद्धा को देखते हुए आज से करीब 450 साल पूर्व जब तुलसीदास के शिष्य मेघादास ने काशीनरेश के आमंत्रण पर रामनगर में रामलीला का मंचन कराया। उसी के बाद जब उन्हें गाजीपुर और लहुरी काशी के बारे में जानकारी हुई। तो वे स्वयं यहां आये और लोगों को रामलीला के लिये प्रोत्तसाहित किया। तब लोगों ने खुद को रामलीला का पात्र बन उनकी प्रेरणा से रामलीला आरम्भ किया।

उसी वक्त से यह रामलीला गाजीपुर के हरीशंकरी, जिसे यहां अयोध्या का रूप दिया गया। वहां से आरम्भ कर अनके स्थानों पर करते हुए रावण की नगरी लंका मे उसका दहन तक किया गया। आज भी जहां रावण का दहन किया जाता है। वह स्थान लंका के नाम से विख्यात है। रामलीला के दौरान विभिन्न स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है। जगह के अनुसार वध किये गये पात्रों का पुतला दहन भी कराने की परम्परा है। जिसके लिये यहां इन पुतलों को बनाने का काम भी जारी है। पुतला बनाने वाला कारीगर की अगर बात माने तो वह पिछले 30 साल से इसका निर्माण कर रहा है। इसके पहले उसके पिता के द्वारा किया जाता रहा है। वह यह काम पैसा कमाने के लिये नहीं बल्कि आस्था के लिये करता है।

पहले जहां रामलीला लोग अपनी आस्था के लिये स्वयं मंचन करते थे। लेकिन समय की कमी के चलते लोग इससे विमुख होते गए, लेकिन परम्परा बंद नहीं हुआ। बल्कि उसका मंचन रामलीला करने वाली समितियों ने संभाल लिया। वहीं इस रामलीला मे कभी भरत व शत्रुध्न की भुमिका अदा करने वाले बच्चा तिवारी जो आज कमेटी के महामंत्री हैं। उनकी बात माने तो यह रामलीला जनपद की शान है। जिसे पहले कराने मे कुछ दिक्कतें आती थीं, लेकिन कमेटी के सदस्यो और जिला प्रशासन के सहयोग से यह निर्वाध गति से चलता आ रहा है। यह रामलीला गाजीपुर गजेटियर में भी अंकित है। कौमी एकता की मिसाल इस रामलीला मे संरक्षक भूमिका निभा रहे। यह रामलीला करीब 500 साल से होती आ रही है।

एकबार 1868 में मुहर्रम और रामलीला को लेकर कुछ विवाद हुआ। तब तत्कालीन आईसीएस ने दोनों के रास्तों को अलग-अलग कर उसको गाजीपुर के गजेटियर मे अंकित किया। तब से जनपद मे मुहर्रम और रामलीला को लेकर कभी विवाद नहीं हुआ। सभी धर्मों के लोग मिलकर सबके त्योहारों को कौमी एकता के रूप मे मनाते आ रहे हैं।
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