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कहानी: जीत

गंगा के पति जवानी में ही मर गए थे लेकिन अपने होनहार बेटे को देखकर हमेशा खुश रहती थी.
गंगा को अपने बेटे रजत और रमा के बीच प्रेम संबंध हरगिज गवारा न था. उस ने इस के लिए रमा को कुसूरवार ठहराते हुए अच्छाखासा अपमानित भी किया. लेकिन रमा ने भी प्यार में हार न मानने की कसम खा ली थी.

रमा जब गंगा के घर से निकली तो उस की आंखों से आंसू निकल रहे थे. उस ने अपनी आंखों के आंसू पोंछे और सामान्य होने की कोशिश की. घर से निकलते समय उसे गंगा की हंसी सुनाई पड़ी.

रमा घर का दरवाजा बंद कर के तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ी. दिल में भरा तूफान उस के शरीर को झकझोर रहा था. धीरेधीरे वह भी शांत हो गया. सिर्फ एक दुख अंदर रह गया था.

गंगा अभी भी हंस रही थी. आजकल की लड़कियां किस तरह की बातें करती हैं. इन पर जरा भी भरोसा नहीं किया जा सकता. कहीं वह फिर से न चक्कर चलाने लगे. इन्हें तो नागिन की तरह कुचल देना चाहिए. इसी ने तो कहा था, ‘तुम्हारा लड़का अगर तुम्हारे बस में है तो उसे संभालो. क्यों मेरे पीछे आता है.’

फिर मुझ से माफी मांगने आई थी, ‘मांजी, मुझ से भूल हो गई. उस दिन गुस्से में इस तरह की बातें मैं कह गई थी.’

रजत जरूर इस के पीछेपीछे घूमता है, तभी तो इस का दिमाग आसमान पर चढ़ गया है. मां से उस का बेटा छीनना चाहती है. अपनी जीत पर इसे घमंड है.

लेकिन रजत चाहे जैसा भी हो, है तो गंगा का ही बेटा. गंगा का आज्ञाकारी बेटा. पति की मौत के बाद गंगा ने उसे इस तरह पालापोसा था कि जो गंगा कहती, वह वही करता. गंगा पानी देती तभी वह पीता, इस तरह का था रजत. उस के लिए मांबाप, भाईबहन, अध्यापक दोस्त सबकुछ गंगा ही थी. रिश्तेदार, परिचित जो भी रजत को देखता, यही कहता कि बेटा हो तो रजत जैसा. गंगा जवानी में ही विधवा हो गईर् थी. उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था. लेकिन बेटा ऐसा लायक मिला कि देखते ही देखते सारा दुख दूर हो गया. वह अपनी मां की एक आवाज पर दौड़ा आता था.

और ऐसे लड़के के बारे में रमा ने जाने कैसे सोच लिया कि रजत उस के काबू में हो गया है, जो वह कहेगी, रजत वही करेगा. रजत उस के कहने पर अपनी मां को छोड़ कर उस के पीछे भागा चला आएगा.

समय रहते अगर गंगा चेत न गई होती तो शायद वही होता जो रमा ने सोचा था. जवानी तो दीवानी होती है. दोनों का परिचय कब और कैसे हुआ, कब एकदूसरे के दिल में समा गए. गंगा को पता ही नहीं चल पाया. लेकिन जब इस बात का पता गंगा को चला, तब तक बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. अगर समय रहते इस तरह उस ने हस्तक्षेप न किया होता तो सारी इज्जत पानी में मिल गई होती.

एक दिन अचानक गंगा ने रजत से पूछा था, ‘दीनानाथ की भांजी तुम्हारे औफिस में काम करती है?’

रजत के लिए यह सवाल चौंकाने वाला था. वह अचकचाते हुए बोला, ‘हां, मेरे यहां, मेरे नीचे ही काम करती है.’‘क्या नाम है उस का?’

‘रमा.’ ‘तुम्हारे साथ उस का कैसा संबंध है?’ ‘अच्छा ही है.’

‘मैं यह नहीं पूछ रही,’ गंगा ने रजत की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘मैं ने जो कुछ सुना है, क्या वह सच है?’

रजत कुछ नहीं बोला. मन ही मन मुसकरा कर रह गया. रजत की इस मुसकराहट से गंगा सबकुछ समझ गई थी. गंगा खीझते हुए बोली, ‘आखिर कुछ बोलते क्यों नहीं? अब मुझ से भी चालाक बनने लगे हो?’ ‘लेकिन मां.’ रजत सहम सा गया, ‘तुम समझती क्यों नहीं?’

‘क्या समझूं? तुम कुछ समझाओगे तभी तो मेरी समझ में आएगा.’‘आखिर आप इतना नाराज क्यों हो रही हैं?’

दरअसल, गंगा को भी अपनी इस नाराजगी का कारण समझ में नहीं आ रहा था. लेकिन रजत की बातें उसे अच्छी नहीं लग रही थीं. वह उसी आवाज में बोली, ‘नाराज न होऊं तो क्या तुम्हारे इस काम से खुश होऊं?’

रजत मुंह से तो कुछ नहीं बोल पाया था, पर उस का चेहरा बोल पड़ा था, ‘मान जाओ न, मां.’

‘तुम ऐसीवैसी लड़की से प्रेम करो और मैं…’‘रमा ऐसीवैसी लड़की नहीं है, मां.’ ‘हां, तुम ने तो उस के बारे में सबकुछ जान लिया है.’

‘तुम उस से मिली हो?’ ‘मिली तो नहीं, पर मैं उस के पूरे परिवार के बारे में जानती हूं.’ ‘लेकिन रमा का इस से क्या लेनादेना?’रजत के मुंह से रमा का नाम सुन कर (उस के बोलने में एक प्यार था) गंगा को और गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘मतलब क्यों नहीं? नीम के पेड़ पर नीम का ही फल लगेगा, आम का नहीं, समझे?’’

रजत थोड़ी देर चुप रहा. शायद पहली बार उस ने अपनी मां के सामने विरोध प्रकट किया था. वह बोला, ‘मैं आप की बात से सहमत नहीं हूं. मैं ने तो रमा या उस के परिवार के बारे में कोई ऐसीवैसी बात नहीं सुनी है.’

‘यानी…’ गंगा उत्तेजित हो उठी, ‘मैं जो कहती हूं वह झूठ है? मेरी बात पर तुम्हें विश्वास नहीं है?’ ‘नहीं, लेकिन जो तुम ने सुना है वह झूठ भी तो हो सकता है. आदमी को जो अच्छा लगता है, इधरउधर की बातें करते रहते हैं. तुम ने क्या सुना है, मुझे भी तो बताओ.’

‘मुझे सुबूत देना होगा?’ ‘मैं जानना चाहता हूं और उस के बारे में सहीझूठ का पता लगाना चाहता हूं.’ ‘यानी कि तुम्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है? तो जाओ…’ मुंह फेर कर वह दूर जाते हुए बोली, ‘जाओ, उस दो टके की लड़की के साथ घूमो,’ इतना कह कर गंगा सिसकने लगी.

रजत निराश हो गया था. अपनी मां के इस व्यवहार को वह समझ नहीं सका था. इस में रोने वाली कौन सी बात हो गई थी. उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘जवान लड़का किसी लड़की से प्रेम नहीं करेगा, तो…’
रजत को एहसास हुआ कि मां से बिना झगड़ा किए ही मुझे वापस आ जाना चाहिए था.
यह वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि गंगा तीर की तरह पलटी और बोली, ‘क्या कहा…? क्या कहा तुम ने? अच्छा, अब यह सब भी बोलने लायक हो गए हो? जाओ, करो प्रेम, शादी करो और घूमो उस के साथ. लेकिन शादी करने के बाद मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘लेकिन मां, जरा तुम सोचो तो…’‘इस में मुझे क्या सोचना है? मुझे अब करना ही क्या है?’

रजत सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा. फिर धीरे से बोला, ‘ऐसा करो न मां, तुम एक बार रमा से मिल लो. मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा.’

‘खबरदार, अगर उस का नाम तुम ने मेरे सामने लिया. मैं उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती. अब तुम उसी के पास जाओ, मेरातुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’

रजत थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा. वह निराश हो गया था. उस ने सोचा, इस का निबटारा इस वक्त नहीं हो सकता. भारी दिल से वह घर के बाहर चला गया.

रमा से मिलने से गंगा ने इनकार कर दिया था. फिर भी गंगा ने दूसरे ही दिन रमा को घर बुलाया. रमा को ऐसे समय में बुलाया जिस समय रजत घर में नहीं था.

अपनी होने वाली सास से रमा सहमतेसहमते मिलने आई. लेकिन गंगा प्यार से बातें करने के बजाय उस से कर्कश स्वर में बोली, ‘तुम औफिस में काम करने जाती हो या वहां काम करने वाले जवान लड़कों को फंसाने जाती हो?’ गंगा की इस बात से रमा को काठ मार गया.

‘सुनो, मेरे बेटे की तरफ अगर फिर से नजर उठा कर देखा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’ रमा भी संभलते हुए बोली, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मांजी.’

‘दूसरे लड़कों के साथ तुम्हें गुलछर्रे उड़ाना हो तो उड़ाओ, पर मेरे लड़के के साथ…’

‘आप अपने लड़के के बारे में कुछ जानती हैं?’‘उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन जानेगा भला? अब तुम उस के सामने नखरे मत करना.’

‘उस से भी कह दीजिएगा, मेरे सामने नहीं आएगा.’ ‘उस से तो कह दूंगी, पर तुम्हें…’

‘मुझे कहने वाली आप कौन होती हैं. अगर आप को अपना लड़का बहुत सुंदर लगता है, तो उसे ओढ़नी ओढ़ा कर घर में ही बैठा लीजिए.’

‘क्या कहा?’ ‘जो आप ने सुना,’ रमा गुस्से से कांपने लगी थी. जो शब्द उस के मुंह से निकल रहे थे उन्हें सुन कर वह खुद ही स्तब्ध रह गईर् थी. दुख भी हुआ था कि इस तरह भी बोलना उसे आता है. लेकिन शोले की तरह ये शब्द पता नहीं कहां से निकल रहे थे.

‘‘एक बार और कह रही हूं, ठीक से सुन लीजिए. आप को अपना लड़का बहुत प्यारा है तो उसे घर में रखिए. नहीं तो कोई भगा ले जाएगा.’

‘अब तुम यहां से चली जाओ, नहीं तो…’

‘आप ने बुलाया है, इसलिए आई हूं,’ रमा नफरत से बोली, ‘नहीं तो आप का मुंह देखने की मुझे क्या जरूरत थी,’ और जातेजाते मुंह घुमा कर थूक दिया था.

गंगा गुस्से से लाल हो उठी थी. थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुई तो स्तब्ध रह गई थी. अब तो रजत पैर पकड़ कर भी रोएगा तो भी वह इस लड़की के लिए नहीं मानेगी. एकदम नहीं मानेगी.

लेकिन जवानी तो दीवानी होती है. इस के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता. इतना अपमानित होने के बाद भी रमा जब रजत से मिली तो पता नहीं रजत ने क्या समझाया कि वह फिर गंगा से माफी मांगने के लिए चली आई थी.

गंगा को लगा था कि गलती तो उस की खुद की थी. जो कुछ किया, उस ने खुद किया. घर बुला कर जो नहीं कहना चाहिए था, वह भी उस ने कहा. उस की बेइज्जती की. फिर भी आ कर वह माफी मांग रही थी. थोड़ी देर के लिए तो वह नरम पड़ गई थी. रमा उसे समझा रही थी. उस के सामने शिकायत की जाए, इस तरह का कुछ भी नहीं कहा था. उस के परिवार के बारे में उस ने जो कुछ भी कहा था, वह सब झूठ था.

लेकिन थोड़ी देर के लिए नरम पड़ी गंगा एकाएक कठोर हो गईर् थी और रमा को उस ने दुत्कार कर भगा दिया था. वह बेचारी रोती हुई घर से बाहर गईर् थी और उसे सुनाने के लिए गंगा खूब जोर से हंसी थी.

मन में यह सवाल उठा था कि इस तरह वह क्या कर रही है? आखिर वह चाहती क्या है? एक बार उस के मन में यह विचार उठा कि क्या इस की शादी रजत से नहीं हो सकती. लड़की तो ठीक ही है.

लेकिन उस का मन फिर बदल गया. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. रमा रास्ते में चलते हुए सोचती जा रही थी. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे. एक बार बेइज्जती सहन कर के जिस घर से निकली थी, उस घर में दोबारा क्यों गई, अपनी और ज्यादा बेइज्जती कराने?

उसे रजत के ऊपर गुस्सा आया. खुद के ऊपर गुस्सा आया. आखिर क्यों उस ने रजत की बात मान ली. सचमुच शायद वह रजत के प्रेम में अंधी हो गई है.

गंगा के साथ पहली बार झगड़ा होने के बाद उसे रजत की याद आने लगी थी. गंगा के साथ झगड़ा करने के बजाय चुपचाप उन की बात सुन कर वापस चली आना चाहिए था. आखिर उस ने झगड़ा बढ़ाया ही क्यों था. कुछ भी हो, आखिर वह रजत की मां है. यदि उस की अपनी मां ने कुछ कड़वा बोला होता तो क्या वह उसे भी इसी तरह जवाब देती?

अपने इस व्यवहार पर उसे पछतावा हुआ था. दूसरे दिन जब रजत मिला तो उस ने माफी मांगी थी, ‘‘रमा, मेरी मां पुराने विचारों वाली है. मेरे अलावा उस का कोई नहीं है. उस ने जो कुछ कहा, उस का बुरा मत मानना. प्लीज, सब भूल जाना.’’

रमा ने नरम हो कर कहा था, ‘‘तुम अपने मन में किसी तरह का विचार मत लाना, रजत. मां का प्यार मैं समझ सकती हूं. लेकिन पता नहीं क्यों मैं गुस्से में जो कुछ नहीं कहना चाहती थी, वह भी कह गई थी. रजत, तुम मुझे माफ कर देना.’’
आखिर रजत के जीवन में भी वो दिन आ गया जब वह रमा को बहू बनाने के लिए तैयार हो गई.
और फिर दोनों पहले की तरह एकदूसरे से मिलते रहे. एक दिन रजत ने रमा से कहा, ‘‘रमा, जो बात तुम ने मुझ से कही है, वही अगर मां से कह दो तो उन का दुख कम हो जाएगा और वह शादी के लिए राजी हो सकती.’’

रमा थोड़ी देर के लिए चुप हो गईर् थी. फिर बोली, ‘‘अगर मां मुझे प्रेम से बुलाएं तो मैं जाऊं. सौ बार माफी मांगूं, लेकिन इस तरह मैं क्यों जाऊं? फिर मेरी बेइज्जती कर दें तो…?’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, मेरा दिल कहता है.’’ और रजत के दिल की बात मान कर रमा फिर गंगा से मिलने गईर् थी. लेकिन गंगा ने फिर उस की बेइज्जती कर दी थी. पूरी तरह बेइज्जत हो कर वापस हुई थी वह. रजत ने उसे तो समझाया था, लेकिन अपनी मां से एक भी शब्द नहीं कह सका था. अगर कहा होता तो आज रमा की यह हालत न हुईर् होती.

उस के दिल में रजत के लिए जहां प्यार था वहां नफरत पैदा होने लगी. अच्छा हुआ कि रजत उस समय वहां नहीं था, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.

4 दिन बीत गए. लेकिन इन 4 दिनों में एकसाथ बहुतकुछ घट गया. रमा ने अपना तबादला लखनऊ करवा लिया, जहां उस का अपना घर था.

5 वर्षों पहले एमए करने के बाद उस की नौकरी इलाहाबाद में लगी थी. वह चाहती तो अपने शहर में भी रह सकती थी. लेकिन यहां इस शहर में रह कर वह नौकरी के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करना चाहती थी. इसलिए इलाहाबाद में ही अपने मामा के साथ रहने लगी थी. जब वह अपने शहर लौटी तो उस के मांबाप ने उस के चेहरे पर छाई उदासी देख कर पूछा था कि क्या बात है, तुम इतनी उदास क्यों हो? लेकिन रमा ने सिर्फ इतना कहा था, ‘वहां अच्छा नहीं लगा. अब मुझे लगने लगा है कि मेरा दाखिला आईएएस में नहीं होगा, इसलिए उदास हो कर लौट आई हूं.’ शहर छोड़ने से पहले वह शाम को औफिस के पीछे रजत से मिली थी.

रमा उदास चेहरे से चुपचाप रजत को देखती रही. रजत ऊबने सा लगा. चुप्पी उसे बहुत अखर रही थी. उस ने बहुत धीरे से, उदास स्वर में कहा था, ‘रमा, अभी थोड़े दिन और धीरज रखो.’

तब रमा हंसी थी, ‘तुम्हारी इस सीख के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’

रजत ने सिर झुकाए हुए कहा, ‘फिर क्या कहूं मैं?’

‘कुछ नहीं, जो कुछ कहना है मुझे कहना है, मुझे करना है. मैं तुम से इसलिए मिलने आई हूं कि अपने प्रेम के लिए, सुख के लिए तुम्हारी जो शर्तें हैं, वे मुझे मंजूर नहीं हैं.’

‘मेरी शर्तें? मेरी कोई शर्त नहीं है.’

‘तुम्हारी मां को मनाने की. तुम चाह कर भी यह काम नहीं कर सकते.’

रजत जमीन की ओर ही ताकता रहा.

‘और मुझे विश्वास हो गया है कि…’

रजत ने बात काटते हुए कहा, ‘यही कि मैं तुम से प्रेम नहीं करता?’

‘नहीं.’

‘तो?’

‘तुम डरपोक हो. तुम किसी से प्यार करने लायक नहीं हो.’

और आगे बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने उस ने एक झटके के साथ गरदन घुमाई और रजत को वहीं छोड़ कर चली गई. दूसरे दिन वह लखनऊ चली गई थी.

रमा के चले जाने के बाद रजत कुछ दिनों तक उदास रहा. लेकिन गंगा बहुत खुश थी. लड़का अभी जवान है,

इस की उदासी 2-4 दिनों में चली जाएगी, यह उस को विश्वास था. दिन बीतने लगे.

एक दिन सुबह पोस्टमैन ने आवाज दी और एक लिफाफा फेंक कर चला गया. रजत औफिस जाने के लिए तैयार हो चुका था. लिफाफा उस ने उठाया. ऊपर रमा की लिखावट देख कर उस का चेहरा खिल उठा.

‘‘किस की चिट्ठी है?’’ गंगा ने पूछा.

रजत ने कुछ नहीं कहा. लिफाफा खोल कर देखा, उस में सिर्फ एक फोटो था. एक दिन रमा और रजत ने साथसाथ फोटो खिंचवाई थी. वही फोटो थी. उस की कौपी रजत के पास भी थी. रमा ने वही भेजी थी. फोटो में रजत रमा को हंसते हुए देख रहा था, और उसे अपनी बांहों में भरे हुए था.

फोटो देख कर रजत का चेहरा खिल उठा.

गंगा रजत के पास आ गई और उस के हाथ से फोटो छीन लिया. वह थोड़ी देर तक उसे देखती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘छिनाल.’’

लेकिन फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे पढ़ कर भड़क उठी. फोटो के पीछे लिखा था, ‘माताजी, मैं आप के बेटे के साथ ही शादी करूंगी.’

लिखावट पढ़ कर गंगा कांपने लगी. फोटो रजत के ऊपर फेंक दी, ‘‘देख लिया न,’’ चीखती हुई गंगा बोली, ‘‘जैसी थी, वैसी करामात कर गई? मैं तो पहले ही कह रही थी कि…’’

रजत ने चेहरा घुमा कर कहा, ‘‘इस तरह की तो नहीं थी…’’

‘‘क्या कहा?’’

लेकिन रजत ने आगे कुछ नहीं कहा और औफिस चला गया.

गंगा ने नीचे पड़े फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में नीचे डाल दिया.

वह काम में मन लगाने की कोशिश करने लगी. पर काम में उस का मन नहीं लगा और एक बार फोटो निकाल कर उस ने फिर से देखा. काफी देर तक  वह फोटो को देखती रही. फिर वापस काम में लग गई.

रात में गंगा को नींद नहीं आ रही थी. उस की आंखों के सामने वही फोटो नाचती रही. 2 दिनों बाद फिर उसी तरह का एक लिफाफा आया. इस दिन लिफाफा गंगा को ही मिला. लिफाफे में उसी तरह का फोटो और उसी तरह की बात लिखी थी, जो पहले फोटो में लिखी थी.

औफिस जाने के लिए रजत कपड़े पहन रहा था. गंगा ने फोटो उस के ऊपर फेंकी, ‘‘ले जा, अपनी फोटो.’’

पता नहीं क्यों रजत को हंसी आ गई.

इस पर गंगा को गुस्सा आ गया, लेकिन बिना कुछ बोले ही वह आंगन में चली गई.

रजत के चले जाने के बाद वह बाहर आई. फोटो देखे बिना उसे चैन नहीं आया. फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे फिर से पढ़ना चाहती थी. खीझते हुए उस ने फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में रख दिया.

अगले दिन पोस्टमैन ने फिर एक लिफाफा फेंका. गंगा उस के ऊपर नाराज हो गई, ‘‘इस के अलावा और कोई चिट्ठी नहीं आती है, क्या?’’

पोस्टमैन हंसा, ‘‘दूसरी आएगी तो दूंगा ही माताजी,’’ और हंसते हुए चला गया.

गंगा को लगा, रजत भी उस पर हंस रहा है. उस का मजाक उड़ा रहा है. लिफाफा ले कर वह रजत के पास गई और बोली. ‘‘ले, और हंस ले.’’

रजत सहम सा गया.

गंगा मारे गुस्से के कांप उठी. फिर बिना कुछ बोले चली गई.

फिर तो रोजाना ही डाक से एक लिफाफा आने का सिलसिला चल पड़ा. उस में रमा और रजत का वही फोटोग्राफ होता और वही लिखा होता. गंगा का गुस्सा अब कम होने लगा था. वह खीझती भी नहीं थी. लिफाफा आता तो पोस्टमैन के हाथ से खुद ही जा कर ले आती. लिफाफा खोलती, फोटो देखती और जो लिखा होता उसे प्यार से पढ़ती. मुसकराते हुए फोटो ले जा कर अलमारी में रख देती. अब वह दिन में कई बार फोटो देखती.

एक दिन रजत ने पोस्टमैन से कहा, ‘‘लिफाफा तुम मुझे दे दिया करो. मेरी मां को नहीं.’’

‘‘लेकिन पता तो उस पर गंगा मां का ही लिखा रहता है और चिट्ठी भी उन्हीं के नाम आती है,’’ पोस्टमैन ने कहा.

इतनी देर में गंगा आ गई. बोली, ‘‘मेरा लिफाफा मुझे ही देना. मेरी बहू का फोटो मुझे देना, किसी दूसरे को नहीं.’’

पोस्टमैन चला गया तो गंगा ने रजत की ओर रुख किया, ‘‘डरपोक कहीं का. जब तुझ में इतना दम नहीं था तो प्यार ही क्यों किया था? तुझ से बहादुर तो मेरी बहू ही है, जिस ने मुझे हरा दिया.’’

रजत मंदमंद मुसकराता हुआ घर से बाहर निकल गया.
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