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इतिहास लाल टोपी का: मुलायम और अखिलेश के सिर पर आखिर यह लाल टोपी आई कहां से?

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को गोरखपुर रैली से 'लाल टोपी' वालों को 'खतरे की घंटी' बताकर नई बहस छेड़ दी है। हालांकि अखिलेश यादव ने बीजेपी के इस हमले को अब अपने पक्ष में ही भुनाना शुरू कर दिया। उन्होंने ट्वीट किया कि भाजपा के लिए ‘रेड अलर्ट’ है महंगाई का, बेरोजगारी-बेकारी का, किसान-मजदूर की बदहाली का और ‘लाल टोपी’ का क्योंकि वो ही इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर करेगी। अखिलेश ने नया नारा देते हुए लिखा, 'लाल का इंकलाब होगा, बाइस में बदलाव होगा'। मगर अचानक चर्चा के केंद्र में आई इस लाल टोपी का इतिहास क्या है और कैसे ये समाजवादी पार्टी की पहचान बन गई, हम इन सारे सवालों के जवाब देंगे।

त्रिपुरा में जीत के बाद योगी के निशाने पर आई थी लाल टोपी

यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी ने समाजवादी पार्टी की लाल टोपी पर इस तरह तीखा हमला किया हो। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के मजबूत गढ़ त्रिपुरा में भगवा लहराने के बाद योगी आदित्यनाथने भी लाल टोपी को निशाने पर लिया था। योगी ने कहा कि त्रिपुरा में 'लाल झंडे' को नीचे लाने के बाद अब उनकी पार्टी 'लाल टोपी' को भी नीचे लाएगी। योगी ने कहा था, ‘लाल टोपी अब काम नहीं करेगी। भगवा का समय आ गया है। भगवा विकास और उदारता का प्रतीक है'।

अखिलेश का तंज, मुख्यमंत्री ने बचपन में लाल मिर्च खा ली होगी

इसके अलावा इसी साल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में लाल टोपी पहने समाजवादी पार्टी के विधायकों का मजाक बनाया। इसके जवाब में समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने ही मुख्यमंत्री से पूछ लिया कि आखिर उन्हें लाल टोपी से डर क्यों लगता है? अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि लगता है बचपन में मुख्यमंत्री ने लाल मिर्च खा ली होगी...पता नहीं क्यों मुख्यमंत्री लाल रंग से चिढ़े हुए हैं। अखिलेश ने जवाब दिया था कि लाल क्रांति का रंग है। अखिलेश ने कहा, 'खून का रंग लाल होता है। हमारा इमोशन भी लाल रंग से जुड़ा हुआ है। जब हम खुश होते हैं तो नाक-कान लाल हो जाता है। हम गुस्से में होते हैं तब भी आंखें और चेहरा लाल हो जाता है। हो सकता है मुख्यमंत्री ने बचपन में लाल मिर्च खा ली होगी।'

'जब-जब गरीबों की आवाज दबती है, लाल टोपी उभरती है'

'लाल टोपी' के इतिहास और उसके पीछे की विचारधारा जानने के लिए मीडिया ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता घनश्याम तिवारी से बात की। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे 'लाल टोपी' समाजवादी पार्टी की पहचान बनी। घनश्याम ने बताया, 'आजादी के बाद जब सोशलिस्ट पार्टी बनी तो अपनी अलग छाप छोड़ने के लिए उन्होंने लाल टोपी को अपनी पहचान बनाया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जब आंदोलन छेड़ा तब भी लाल टोपी प्रचलन में रही। जब-जब सत्ता में अहंकार होता है, गरीबों की आवाज दबाई जाती है, तब लाल टोपी उभरती है। मुझे नहीं लगता है कि प्रधानमंत्री या किसी को भी ऐसे किसी की वेशभूषा का मजाक उड़ाना चाहिए।'

समाजवादी पार्टी की यूं पहचान बनी लाल टोपी, रूसी क्रांति से भी कनेक्शन

क्या 'लाल टोपी' का क्रांति या इंकलाब से कोई संबंध है? इस सवाल पर घनश्याम तिवारी कहते हैं, 'क्रांति नहीं...क्रांति तो बहुत बड़ी चीज होती है। जय प्रकाश नारायण जी के बाद राम मनोहर लोहिया जी ने भी लाल टोपी को अपनाया। 1992 में जब नेताजी मुलायम सिंह यादव ने जब समाजवादी पार्टी बनाई तो उन्होंने भी लाल टोपी की इस विरासत को आगे बढ़ाया और वहीं से यह आधुनिक समाजवादी पार्टी की पहचान बनी।' उन्होंने कहा कि लाल टोपी का अपने आप में ही एक बड़ा इतिहास रहा है। रूसी क्रांति (1917-1922) के दौरान भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ, रूस में इसे बाड्योनोवका के नाम से जानते हैं।

मंच से गदा लहराने के पीछे क्या संदेश?

आपने अक्सर अखिलेश यादव को अपनी रैलियों के मंच से गदा लहराते हुए देखा होगा। क्या इसके पीछे भी कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, हमने यह भी जानने की कोशिश की। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता घनश्याम तिवारी ने आगे कहा, 'गदा लहराना सांकेतिक हो सकता है। मुझे नहीं लगता कि इसके पीछे कोई ऐतिहासिक पक्ष है। जब कोई बड़ा नेता रैलियों या सभाओं में जाता है तो वहां मंच पर मौजूद कार्यकर्ताओं का मन रखने के लिए उनकी ओर से लाई गई गदा, तलवार आदि को हाथ में लेना पड़ता है। इनका सांकेतिक अर्थ जीत और एकजुटता दिखाना होता है।'

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