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इलाज के बहाने जेल से निकले मुख्तार पहुंचे DGP ऑफिस और IG को थमा दी 250 पुलिसवालों की ट्रांसफर लिस्ट

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उस वक्त बीएसपी सुप्रीमो मायावती बतौर सीएम पूरे लाव लश्कर के साथ चलती थीं। मायावती के शासन काल में मुख्तार अंसारी सत्ता के संरक्षित माननीय के रूप में लखनऊ की जेल में बंद थे। मुख्तार की पहचान उन रसूखदार माननीयों में थी, जिसका सारा नेटवर्क पूर्वी उत्तर प्रदेश में संचालित होता था और इस नेटवर्क का कंट्रोल रूम लखनऊ जेल की बैरक थी। मुख्तार की सियासत का रसूख ये था कि लखनऊ से लेकर मऊ तक पुलिस से लेकर आबकारी विभाग तक के ट्रांसफर मोख्तार (मुख्तार) अंसारी की लिखी एक सादी पर्ची पर भी हो जाते थे।

लखनऊ में उन दिनों ऐसी ही हनक में दारुलशफा के टाइप सेंटरों पर सैकड़ों चिट्ठियां टाइप हो जाती थीं। 2000 के बाद का ये वक्त मायावती के शासन काल का दौर था। उन दिनों मुख्तार लखनऊ की जेल में था और बीएसपी के कोटे का विधायक भी। जलवा ऐसा था कि ट्रायल के बीच जेल में बंद मुख्तार जेल से इलाज के बहाने लखनऊ के केजीएमयू के लिए निकले और पूरा लाव-लश्कर ऐंबुलेंस के साथ ले लिया। केजीएमयू पहुंचे मुख्तार को यूं तो नियम के मुताबिक जेल वापस जाना था, लेकिन काफिला लखनऊ के डीजीपी दफ्तर की ओर मुड़ गया।

गेट पर नाम नोट करने की हिम्मत तक ना हुई

सैकड़ों समर्थकों और कुछ पुलिसकर्मियों को लिए गाड़ी डीजीपी ऑफिस के गेट पर रुकी। मुख़्तार गाड़ी से नीचे उतरे और दोनों हाथ ऊपर कर अंगड़ाई ली। चारों ओर देखा फिर भीड़ के साथ अंदर प्रवेश कर गए। मुख्तार भले जेल की कैद में थे, लेकिन रिकॉर्ड ऐसा था कि गेट पर एसपी और डीआईजी रैंक के अफसर रिसीव करने पहुंचे थे। डीजीपी के दफ्तरी गेट पर किसी भी सुरक्षा कर्मी ने किसी भी तरह की रोकटोक या रजिस्टर में एंट्री तक की जहमत नहीं उठाई।

आईजी गेट तक छोड़ने भी पहुंचे

आईजी अवस्थापना के केबिन में पहुंचे मुख्तार अंसारी ने पीछे हाथ बढ़ाया और 250 पुलिसकर्मियों की एक लिस्ट निकाली। मुस्कुराते आईजी साहब को लिस्ट पकड़ाई और फिर समर्थकों के साथ गेट की ओर चले। ऑफिस के दरवाजे पर छोड़ने आए आईजी हाथ में कागज लिए मुख्तार से बात करते रहे और फिर दुआ-सलाम भी हुई। मुख्तार ने आखिर में कहा- हो जाई ना। सत्ता पक्ष के अफसर ने हामी भर दी। स्थानीय अखबार के एक फोटोग्राफर ने इन सब की फोटो उतार ली थी। मुख्तार को इसका पता भी था।

फोटो छप जाएगी तो क्या होगा, जांच तो अफसर करेंगे

लखनऊ के एक पत्रकार ने अपना नाम ना लिखने की शर्त पर बताया कि मुख्तार उस रोज डीजीपी दफ्तर से दारुलशफा भी गए। जिस फोटोग्राफर ने फोटो खींची थी, उसे मिलने बुलाया। मुख्तार ने सीधे-सीधे कहा, फोटो मत छापिएगा। छाप देंगे तो क्या हो जाएगा, ना छापने से क्या बिगड़ जाएगा। आखिर जांच अफसरों को ही तो करनी होगी ना। मुख्तार के ऐसे निर्देश सभी के पास पहुंचे थे। सत्ता का रसूख और बाहुबल की हनक ऐसी थी कि अगले रोज किसी भी पत्रकार ने मुख्तार की वो फोटो अखबार में नहीं छापी। दारुलशफा की मुलाकात के बाद मुख्तार जेल लौट चुके थे।

पूर्वांचल में अब भी 'रॉबिन हुड' की छवि

मुख्तार का ये रसूख एक लंबे वक्त तक उत्तर प्रदेश की सियासत में बरकरार रहा। रॉबिनहुड की छवि वाले मुख्तार अंसारी ने तमाम लोगों की मदद की, जिसमें तमाम पुलिसवाले भी शामिल थे। पत्रकार अरुणवीर सिंह कहते हैं कि मऊ में मुख्तार को एक तबका भगवान की तरह मानता है। मुख्तार की छवि रॉबिनहुड की थी, लेकिन माफिया की भी। वर्षों से जेल में बंद मुख्तार अंसारी की आज सैकड़ों करोड़ की संपत्तियां या तो जमींदोज हैं और या तो उन्हें जब्त, कुर्क या पाबंद किया जा चुका है। लेकिन इन सब के बावजूद मुख्तार को पू्र्वांचल के उन रसूखदार चेहरों में आज भी गिना जाता है, जो सत्ता में वोटों के ध्रुवीकरण के कारक और कारण दोनों बन सकते हैं।

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