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आतंकियों से मोर्चा लेते शहीद हुए थे पिता, अब नौकरी के लिए दर-दर ठोकर खा रहा बेटा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लेते समय वीरगति को प्राप्त हुए सेना के एक जांबाज का परिवार दो साल से भटक रहा है। इस परिवार को राज्य सरकार की ओर दी जाने वाली 50 लाख रुपये की सहायता राशि किसी तरह एक सप्ताह पहले मिल गयी। लेकिन परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के आदेश के बावजूद इसकी फाइल शासन में अटकी हुई है। बलिदानी का बेटा सात दिनों से लखनऊ में रहकर मंत्रियों से मिलने के लिए भटक रहा है।

आर्टीलरी रेजीमेंट के हवलदार मुकेश बाबू रामपुर के टांडा के बदली गांव के रहने वाले थे। उनकी तैनाती वर्ष 2020 में अरूणाचल प्रदेश में थी। अगस्त 2020 में हवलदार मुकेश बाबू हाइ एल्टीट्यूट एरिया में चीन से सटी लाइन आफ एक्यूअल कंट्रोल (एलएसी) पर तैनात थे। इस बीच सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ आपरेशन स्नो लैपर्ड चलाया। हवलदार मुकेश बाबू आपरेशन में बलिदानी हो गए।

राज्‍य सरकार की तरफ से म‍िलनी थी नौकरी : उनके बलिदान के बाद परिवार को राज्य सरकार की ओर से 50 लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान करने के साथ एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जानी थी। परिवार की ओर से इसके लिए कई बार यूपी सैनिक कल्याण निदेशालय से पत्राचार किया। बलिदानी मुकेश बाबू की पत्नी गंगा देवी और बेटा विमल ने कई बार सैनिक कल्याण निदेशालय के अफसरों को प्रार्थना पत्र दिया। लंबी जेद्जेहद के बाद एक सप्ताह पहले ही 50 लाख रुपये की राशि राज्य सरकार की ओर से मिल गई। लेकिन बलिदानी के बेटे विमल को नौकरी अब तक नहीं मिली।

बेटा विमल अपनी मामी रुचि के साथ लखनऊ में पड़े हुए हैं। उनको सैनिक कल्याण के निदेशक ब्रिगेडियर रवि ने बताया है कि विमल को नौकरी देने की फाइल शासन में लंबित पड़ी है। बेटा गुरुवार को मुख्यमंत्री के यहियागंज गुरुद्धारा के कार्यक्रम में भी पहुंचा। लेकिन यहां मुलाकात नहीं हो सकी। अब परिवार उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक से मिलकर अपनी फरियाद करेगा।

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