Today Breaking News

गेहूं की बोआई का सबसे सही समय 15 से 30 नवंबर तक, भरपूर उत्पादन के लिए जरूर अपनाएं ये तरीका

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. दीपावली के बाद अब धान की कटाई और गेहूं की बोआई की तैयारियां शुरू हो गई हैं। विशेषज्ञों ने 20 से 24 डिग्री के बीच तापक्रम पर गेहूं की बोआई करने की सलाह दी है। 15 से 30 नवंबर तक गेहूं बोआई का उत्तम समय है। ऐसे में खेतों की तैयारिंयां शुरू कर दें।

गेहूं की बोआई के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन 40 किलोग्राम फास्फोरस 35 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता प्रति एकड़ होती है। पांच किलोग्राम जिंक प्रति एकड़ बीज बोआई के समय देना चाहिए। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा पोटाश तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय देनी चाहिए।

बख्शी का तालाब के डा. चंद्रभानु गुप्ता कृषि महाविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डा. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि अच्छी फसल के लए बीज का चुनाव बहुत जरूरी है। अगेती बोआई के लहए गेहूं की एचडी- 2967 (प्रमाणित), पीबीडब्ल्यू- 343 (आधारी और प्रमाणित), एचडी- 3086 (प्रमाणित) डब्ल्यूबी- 2( प्रमाणित ), एचडी- 3226 एवं उन्नत (पीबीडब्लू- 343) यह प्रजातियां राजकीय कृषि बीज भंडार पर उपलब्ध हैं।

यह प्रजातियां 3700-3915 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 50 फीसद अनुदान पर उपलब्ध हैं। जो किसान भाई सिंचित दशा में विलंब से बोआई करना चाहते हैं उनके लिए एचआइ-1563, एचडी-2985, पीबीडब्लू-373, डीबीडब्लू- 173, एचडी- 3118, डीबीडब्लू- 16, नरेंद्र गेहूं- 1014, पीबीडब्लू- 752, पीबीडब्लू- 757 अच्छी किस्में हैं। नेशनल सीड कारपोरेशन ईकाई में एचडी- 2967, उन्नत- 343 किस्म का बीज उपलब्ध है, जिसमें एचडी- 2967 बीज उन किसानों को भी दिया जा रहा है।

जो किसान बीज उत्पादन का काम करना चाहते हैं, उन किसानों का बीज एनएससी निर्धारित मूल पर खरीद लेती है। ऐसे तो गेहूं में बहुत सी व्याधियां रहती हैं लेकिन समय से बोआई करने पर बीमारी एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। डा. सिंह ने बताया कि गेहूं में प्रमुख रूप से दीमक का प्रकोप अधिक होता है। जिन किसान भाइयों के खेतों में दीमक का प्रकोप अधिक होता हो, गेहूं के बीजों को क्लोरोपायरीपास नामक कीटनाशक से बीज शोधन करना चाहिए।

इसके लिए पक्के फर्श पर बीज को फैलाकर एक किलोग्राम बीज में पांच एमएल कीटनाशक को अच्छी तरह से मिला दे। उसके बाद बोआई करें। बीज शोधन के लिए जैविक फफूंदी नाशक उत्पाद अधिक प्रभावी हैं। इसमें प्रमुख रूप से मेटारजियम एनीसोपली एक अच्छा फफूंदी जनित जैविक उत्पाद है जो दीमक को अच्छी तरह से प्रबंधित करता है। इसकी दो ग्राम मात्रा को एक किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बोआई के पहले दो ग्राम जैविक उत्पाद को एक लीटर पानी की दर से मिला लें।

ऐसे बढ़ेगा उत्पादन

अधिक उत्पादन के लिए आवश्यकतानुसार खेतों में सिंचाई हेतु बरहा एवं पट्टी बनाना अति आवश्यक है।

खरपतवार के प्रबंधन हेतु टापिक 15 प्रतिशत डब्लूयूपी बोआई के बाद छिड़काव करें।

एक ग्राम दवा को एक लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से खरपतवार का प्रबंधन हो जाता है।

संभव हो सके तो जिंक सल्फेट और आयरन सल्फेट का पत्तियों के ऊपर ही छिड़काव करें।

गेहूं की पहली सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें कि गहरी सिंचाई न करें।

गेहूं के मामा एवं गेहूं की जई नामक खरपतवार को प्रबंधित करने के लिए टोटल (सल्फोसल्फूरान 75 प्रतिशत एवं मेटासल्फूरान मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लू जी) का छिड़काव करें।

दुग्धावस्था के समय यह ध्यान रखें की तेज हवा चलते समय सिंचाई बिल्कुल न करें।

'