गाजीपुर में रेल-कम-रोड ब्रिज पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं, 37 किमी रेल दोहरीकरण भी रुका
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर में आधारभूत विकास की दो प्रमुख परियोजनाएं एक बार फिर चर्चा में हैं। इनमें गाजीपुर-ताड़ीघाट रेल-कम-रोड ब्रिज और गाजीपुर-मऊ रेल लाइन दोहरीकरण परियोजना शामिल हैं। गंगा नदी पर बना रेल-कम-रोड ब्रिज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है।
लगभग 1.02 किलोमीटर (1027 मीटर) लंबा यह पुल करीब 600 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है। इसमें दो रेल पटरियां और दो लेन की सड़क बनाई गई है, जिससे रेल और सड़क दोनों का एक साथ संचालन संभव है। इसका उद्देश्य गाजीपुर को ताड़ीघाट के जरिए मुख्य रेल नेटवर्क से जोड़ना और पूर्वांचल की कनेक्टिविटी को मजबूत करना है।
हालांकि, इस पुल पर कई बार ट्रायल और परीक्षण किए गए हैं और मालगाड़ियों का संचालन भी हुआ है, लेकिन अब तक नियमित रूप से एक्सप्रेस ट्रेनों का परिचालन शुरू नहीं हो सका है। इससे स्थानीय लोगों में असंतोष बना हुआ है।
इसी विकास श्रृंखला का हिस्सा गाजीपुर से मऊ तक लगभग 37 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के दोहरीकरण की योजना थी। यह परियोजना हावड़ा-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग से बेहतर जुड़ाव के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही थी।
इस परियोजना के रोके जाने की जानकारी सामने आने के बाद राज्यसभा सांसद डॉ. संगीता बलवंत ने संसद में यह मामला उठाया। उन्होंने रेल मंत्री से मुलाकात कर इसे पुनः शुरू कराने की मांग की है। डॉ. बलवंत ने इस परियोजना को पूर्वांचल के विकास, यात्री सुविधा और रोजगार के अवसरों के लिए आवश्यक बताया।
डॉ. संगीता बलवंत ने यह भी कहा कि जब मनोज सिन्हा रेल राज्य मंत्री थे, तब गाजीपुर के लिए कई महत्वपूर्ण रेल परियोजनाएं शुरू हुईं, जिनमें गाजीपुर–ताड़ीघाट रेल-कम-रोड ब्रिज प्रमुख है। उनका कहना है कि यदि उस समय विकास कार्यों को निरंतर राजनीतिक समर्थन मिला होता, तो आज गाजीपुर में विकास का पहिया और तेज चलता। फिलहाल, गाजीपुर–मऊ रेल लाइन दोहरीकरण और ब्रिज से जुड़ी ट्रेनों के नियमित संचालन पर क्षेत्र की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि इन परियोजनाओं से ही गाजीपुर और आसपास के जिलों के आर्थिक-सामाजिक विकास की राह खुल सकती है।
