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गाजीपुर: माह-ए-रमजान में नमाज और कुरान पढ़ने का बड़ा महत्व

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर माह-ए-रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ जकात और फितरा (दान या चैरिटी) देने का भी बहुत महत्व है। जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। इसे हर साहिब-ए-नसाब (मालदार) पर फर्ज है। वहीं फितरा हर साधन संपन्न व्यक्ति को अदा करना जरूरी होता है। साथ ही इसकी रकम गरीबों, विधवाओं या अन्य पात्रों तक पहुंचाना भी आवश्यक होता है। रोजेदारों ने जकात निकालना शुरू भी कर दिया है।

माह-ए-रमजान में सिर्फ रोजा रखना ही नहीं बल्कि जकात और फितरा निकाल कर गरीबों एवं अन्य पात्रों की मदद करना जरूरी करार दिया गया है। इसके पीछे एक ही मकसद है कि गरीब एवं विधवाएं ईद की खुशियों से अपेक्षित न रह जाएं। इसलिए यह हुक्म जारी किया गया है कि जरूरतमंदों को ही इस रकम को दिया जाए। अगर गैर जरूरतमंद को इसकी रकम दी गई तो इस अमल का पुण्य भी नहीं मिलता है।

क्या है जकात
गोराबाजार के मौलाना नईमुद्दीन ने बताया कि इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना फर्ज बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है जिसे जकात कहते हैं। यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है। बताया कि यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है लेकिन वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर रिटर्न फाइल करने की तरह ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालते हैं। मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है। महिलाओं या पुरुषों के पास अगर ज्वैलरी के रूप में भी कोई संपत्ति होती है तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है लेकिन जो लोग हैसियतमंद होते हुए भी जकात नहीं देते हैं वो गुनाहगारों में शुमार होते हैं।

क्या है फितरा
फितरा वो रकम होती है जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की साधन संपन्न के साथ ईद भी मन जाती है। फितरे की रकम भी गरीबों, विधवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है। इसके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।

इफ्तार से आती है एकता और भारईचारे की भावना
रेवतीपुर स्थित बड़ी मस्जिद परिसर में शुक्रवार की शाम में रोजा इफ्तार का आयोजन किया। इसमें सैकड़ों लोगों ने एक साथ रोजा खोला। नमाज के बाद शांति और सदभाव के लिए दुआ कराई गई। वक्ताओं ने कहा कि सामूहिक रोजा इफ्तार जैसे आयोजन से आपसी एकता व भाईचारे की भावना आती है। साथ ही ऐसे आयोजनों के लिए समाज के सभी सुविधा संपन्न लोगों को आगे आना चाहिए। इस अवसर पर डा. बद्रेआलम खां, विनोद गुप्ता, पंकज राय, साबीर अंसारी, इजहार, मेहरूददीन खां, अलाउददीन आदि थे।
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