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कहानी: सुजाता

मुकेश कुमार बनारस के नामी  वकील थे. दयालबाग में उन का बड़ा सा बंगला था. आज उन के घर की रौनक देखने लायक थी. हजारों रंगीन बल्ब जगमगा रहे थे. ; चारो तरफ चहल पहल थी.
अतुल ने सुजाता से तलाक मांगा, उस ने दे दिया. सुजाता को पति के प्यार की भीख नहीं चाहिए थी. अतुल ने सुजाता को अबला समझा था, लेकिन वह कमजोर नहीं थी…

मुकेश कुमार बनारस के नामी  वकील थे. दयालबाग में उन का बड़ा सा बंगला था. आज उन के घर की रौनक देखने लायक थी. हजारों रंगीन बल्ब जगमगा रहे थे. दर्जनों हैलोजन बल्ब्स सामने की रोड पर भी लगे थे. पूरी रोड को कवर कर बड़ा सा पंडाल सजाया गया था. पंडाल के अंदर भी काफी सजावट थी. और बिस्मिल्लाह खान की शहनाई बज रही थी. बरात के शानदार स्वागत की पूरी तैयारी थी. क्यों न हो, उन की इकलौती बेटी सुजाता की शादी जो थी.

सुजाता ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद कंप्यूटर के कुछ कोर्स किए थे. वह राज्य की चैस चैंपियन थी. इस के अतिरिक्त, उस ने संगीत में प्राथमिक शिक्षा भी ली थी. देखने में सुंदर भी थी. उस का भावी पति अतुल लखनऊ का रहने वाला था. उस ने

भी बीएचयू से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटैक किया था. बेंगलुरु में एक अमेरिकन कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. मुकेश साहब बेटी की शादी अच्छे सजातीय लड़के से कर निश्ंिचत हो गए थे. अरेंज्ड मैरिज थी. बेटी को जरूरत की सब चीजें दिल खोल कर दी थीं. शादी के एक सप्ताह बाद ही सुजाता पति के साथ बेंगलुरु आ गई थी.


अतुल और सुजाता दोनों बहुत खुश थे. सुजाता तो शाकाहारी थी पर अतुल मांसाहारी था. पर सुजाता को इस में कोई आपत्ति नहीं थी. दोनों ने प्लानिंग की थी कि 5 साल के बाद ही कोई बच्चा हो. इस बीच, दोनों ने खूब मौजमस्ती की. देशविदेश की सैर भी की. शादी के 6 साल बाद सुजाता मां बनने वाली थी. तभी अतुल को लंबे समय के लिए अमेरिका जाना पड़ा था. कंपनी ने उस के लिए एच 1 बी जौब वीजा लिया था. सुजाता को एच 4 वीसा, जो आश्रितों के लिए होता है, मिला था.

दोनों अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में आ गए थे. कुछ महीने बाद उन को एक प्यारी सी बेटी हुई थी, रेणु. अमेरिका में जन्म होने के कारण उसे अमेरिकी नागरिकता मिल गई थी. साथ में अतुल ने उस के लिए भारतीय कौंसुलेट से ओवरसीज सिटीजन औफ इंडिया कार्ड भी बनवा लिया था.

सुजाता अपने वीजा पर अमेरिका में कोई काम नहीं कर सकती थी. और वैसे भी, उस की डिगरी पर कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी. पर वह घर पर ही कुछ भारतीय बच्चों को चैस सिखलाया करती थी.

इस से उस का समय कट जाता था. अमेरिका में बच्चों में पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ न कुछ सीखने का शौक होता है. वह इस के बदले में कोई फीस तो नहीं लेती थी क्योंकि औपचारिक तौर पर वह यह काम नहीं कर सकती थी. पर जब कभी रेणु के जन्मदिन पर और अपनी एनिवर्सरी पर उन बच्चों व उन के मातापिता को बुलाती थी तो वे जानबूझ कर कैश ही गिफ्ट करते थे. सुजाता ने अमेरिका में पियानो बजाना भी सीख लिया था.

शुरू के 4-5 साल तो ठीक से बीत गए थे. दोनों पतिपत्नी बहुत खुश थे. रेणु अब अमेरिका में स्कूल जाने लगी थी. कुछ दिनों बाद पति व पत्नी में अकसर नोकझोंक होने लगी थी क्योंकि अतुल अकसर वीकैंड में देररात घर लौटता था. इस के चलते कभीकभी तो लड़ाईझगड़े भी होते थे. अतुल का उसी की कंपनी में कार्यरत एक अमेरिकन लड़की से अफेयर चल रहा था. यह बात अब सुजाता से छिपी नहीं थी. सुजाता इस का कड़े शब्दों में विरोध करती थी. आएदिन घर में तनाव रहता था.


एक दिन अचानक अतुल ने सुजाता से कहा, ‘‘बेहतर है, अब हम अलग हो जाएं.’’

सुजाता बोली, ‘‘तनाव तो तुम ने पैदा किया है हमारे बीच उस अमेरिकन लड़की को ला कर. उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंको, सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा.’’

अतुल बोला, ‘‘तुम जैसा सोच रही हो, वह नहीं होगा. हमारे बीच की खाई पाटना अब मुमकिन नहीं है. क्यों न हम तलाक ले लें?’’सुजाता को इस की उम्मीद नहीं थी. उस ने अपने को संभालते हुए

कहा, ‘‘बेहतर है, तलाक की बात तुम ने शुरू की. मैं भी बंटा हुआ पति नहीं चाहती हूं.’’थोड़ी देर रुक कर, फिर सुजाता ने आगे कहा, ‘‘क्यों न हम एक बार इंडिया में अपनेअपने घर बात कर उन्हें यह सब बता दें? इस के बाद जैसा तुम कहोगे, वैसा होगा.’’

अतुल इस के लिए तैयार नहीं था. उस के मन में चालाकी सूझी थी. उसे अमेरिका आए 5 साल से ज्यादा हो गया था. उस का एच 1 बी वीजा 8 महीने बाद खत्म हो रहा था. यह वीजा 6 साल से ज्यादा नहीं मिलता है. उस का मन अमेरिका छोड़ने का नहीं था. वहां की लाइफस्टाइल उसे बेहद पसंद थी. उस ने मन में अमेरिकन लड़की से शादी करने की ठान ली थी. इस से उसे ग्रीन कार्ड आसानी से मिल जाता. फिर अमेरिका में जितने दिन चाहता, रह सकता था. उस को भय था कि यह बात सुजाता के पिता को अच्छी नहीं लगेगी और वे खुद एक वकील हैं, आसानी से तलाक नहीं होने देंगे और मामला लंबे समय तक लटका रहेगा.

सुजाता ने आगे कहा, ‘‘तब सीरियसली बताओ, मुझे क्या करना चाहिए?’’अतुल बोला, ‘‘मैं यहां डाइवोर्स सूट फाइल करूंगा. और तुम्हें बता दूं कि कैलिफोर्निया में ‘नो फाल्ट’ तलाक का नियम है. यदि पति या पत्नी में से कोई भी यहां की कोर्ट में तलाक की अर्जी देता है किसी वजह से भी तो उसे कोर्ट में वजह साबित करने की जरूरत नहीं होती है. हां, ज्यादा से ज्यादा प्रौपर्टी के बंटवारे और बच्चे की कस्टडी के लिए आपस में समझौता कर लेना होता है या फिर कोर्ट के फैसले का इंतजार करना पड़ता है.’’

सुजाता बोली, ‘‘जब तुम ने फैसला कर ही लिया है, तो मैं तुम से जबरदस्ती बंध कर नहीं रह सकती...


हूं. ठीक है, अब देररात

हो चुकी है, आगे कल

बात होगी.’’

रात में सुजाता ने अपने पापा को सारी बातें विस्तार से बताई थीं. उस के पिता ने कहा भी था कि वे अतुल के पूरे परिवार को इंडिया में कोर्ट केस में बुरी तरह ऐसा फंसा देंगे कि पूरी जिंदगी कोर्ट के चक्कर लगाते रहेंगे.

सुजाता ने कहा, ‘‘नहीं पापा, इस में अतुल के परिवार का कोई दोष नहीं है. उन को बेवजह क्यों तंग करना है, और जब अतुल को मुझ से प्यार ही नहीं रहा, तो मैं क्या उन से प्यार की भीख मांगूं?’’

अगले दिन सुजाता ने अतुल से कहा, ‘‘तुम अपने पेपर्स तैयार करा लो, मैं साइन कर दूंगी.’’

अतुल बोला, ‘‘इस में एक बाधा है जो तुम्हारे हित में नहीं है.’’

वह बोली, ‘‘अब भी तुम मेरा हित सोच रहे हो?’’

अतुल बोला, ‘‘बात ठीक से समझो. जिस दिन कोर्ट से तलाक मिल जाता है, उसी दिन से तुम्हारा अमेरिका में रहना, गैरकानूनी हो जाएगा क्योंकि तब तुम मुझ पर आश्रित नहीं रहोगी और तुम्हारा वीजा  रद्द हो जाएगा. तुम भारी मुसीबत में फंस जाओगी.’’

सुजाता बोली, ‘‘तब, मुझे क्या करना चाहिए?’’

अतुल बोला, ‘‘मैं सारे पेपर्स तैयार करवा लेता हूं. इस के अतिरिक्त एक एग्रीमैंट भी तैयार कर लेता हूं. मेरा जितना भी बैंक बैलेंस और शेयर्स हैं उस का आधा तुम्हें दे रहा हूं. रेणु की कस्टडी भी तुम्हें दे रहा हूं क्योंकि बेटी मां के पास ज्यादा खुश रहेगी. तुम सारे पेपर्स पर साइन कर दो. जितना जल्दी हो जाए, अच्छा है क्योंकि जितनी बार हम वकील के यहां या कोर्ट जाएंगे, महंगा पड़ेगा. यहां वकील की फीस बहुत ज्यादा होती है. पेपर्स साइन कर तुम इंडिया जा सकती हो क्योंकि तब तक तुम्हारा वीजा वैलिड रहेगा. बाकी, सब मैं यहां देख लूंगा.’’


सुजाता बोली, ‘‘ठीक है, मुझे सबकुछ मंजूर है जिस में तुम्हारी खुशी है. तुम पर प्यार न तो थोपूंगी और न ही इस के लिए तुम से भीख मांगूगी.’’

अतुल बोला, ‘‘तो मैं वकील से मिल कर पेपर्स तैयार करा लेता हूं.’’

सुजाता बोली, ‘‘हां, करा लो. मगर मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिए. इंडिया जाने का अपना और रेणु का टिकट मैं खुद कटाऊंगी. मुझे या रेणु को जो कैश गिफ्ट मिलते थे, उन में से कुछ पैसे बचाए हैं. इस के अतिरिक्त पापा का दिया क्रैडिट कार्ड भी है. उस से मेरा काम हो जाएगा. हां, रेणु मेरी बेटी मेरे ही साथ रहेगी.’’

अतुल बोला, ‘‘मगर रेणु के लिए मैं कुछ देना चाहूंगा.’’

‘‘वे पैसे हमारी तरफ से अपनी नई अमेरिकन बीवी को गिफ्ट कर देना,’’ सुजाता ने कहा.

2 दिनों बाद अतुल ने सुजाता को तलाक से संबंधित पेपर्स दिए थे. सुजाता ने उन पेपर्स पर साइन कर अतुल को लौटा दिए थे. कुछ ही दिनों के बाद सुजाता को कोर्ट से भी एक नोटिस मिला था, जिसे उस ने तलाक पर अपनी सहमति के साथ वापस भेज दिया था.

2 सप्ताह के अंदर सुजाता अपनी बेटी रेणु के साथ इंडिया आ गईर् थी. 40 वर्ष की उम्र के आसपास अब वह एक बेटी की सिंगल पेरैंट थी. उधर, अतुल अपनी अमेरिकन प्रेमिका के साथ रहने लगा था. चंद महीनों के अंदर अतुल और सुजाता का तलाक भी हो गया था. फिर अतुल ने अमेरिकन से शादी कर ली थी.


इधर, सुजाता अपने पापा के साथ बनारस में थी. उस के पापा ने कहा, ‘‘बेटी, तू डरना नहीं. तेरा बाप जिंदा है. तुझे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देगा.’’

सुजाता ने कहा, ‘‘मुझे आप के रहते किसी बात की चिंता नहीं है. पर मुझे अपना और रेणु का भविष्य सुनिश्चित तो करना ही होगा. हम पूरी जिंदगी किसी के सहारे तो नहीं काट सकते हैं.’’

इंडिया आने के कुछ ही महीने बाद उस ने बीएचयू में एमएससी (फिजिक्स) में ऐडमिशन लिया था. अपने फ्री समय में घर से कंप्यूटर पर स्काइप द्वारा अमेरिका के अपने कुछ पुराने बच्चों को चैस की कोचिंग देने लगी थी. इस में अच्छी आमदनी भी थी. एक बच्चे से एक घंटे कोचिंग के लिए 500 रुपए तो आसानी से मिल जाते थे क्योंकि अमेरिका में यही बच्चे एक घंटे के लिए सौ डौलर तक देते हैं.

इस के अतिरिक्त सुजाता को पियानो बजाना भी आता था. बनारस में उसे कोई पियानो सीखने वाला विद्यार्थी तो नहीं मिला क्योंकि वहां पियानो दूर तक किसी के पास नहीं था. पर कुछ बच्चे कीबोर्ड सीखने वाले मिल गए थे. पिता के रहते उसे पैसे की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वह आर्थिकरूप से अब आत्मनिर्भर थी. उस ने रेणु का ऐडमिशन भी एक प्रसिद्ध इंटरनैशनल स्कूल में करा दिया था.

छुट्टियों में वह रेणु के साथ किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाती थी. इस से बनारस की गरमी से भी बच जाती थी और मनोरंजन भी हो जाता था. उस ने कम उम्र में ही रेणु को भी चैस की कोचिंग देना शुरू कर दिया था. उस ने एक एनजीओ भी जौइन कर लिया था जो अमेरिका में पीडि़त भारतीय महिलाओं की मदद करता था.

एक बार सुजाता के घर उस की मौसी आई थी. सुजाता कहीं घूमने के लिए बाहर निकल रही थी. वह जींस और टौप पहने थी.

उस की ड्रैस पर मौसी ने कहा, ‘‘यह क्या पहनावा है. बेटियों को ठीक से तो रहना चाहिए. इतनी उम्र हो गई इतना भी नहीं सीखा?’’

सुजाता ने कहा, ‘‘मौसी, आप ने तो ऐसा ब्लाउज पहन रखा है कि आधी छाती और आधी पीठ नजर आ रही है और साड़ी भी नाभि के नीचे बांध रखी है. मेरे पहनावे से तो मेरा कोई अंगप्रदर्शन नहीं हो रहा है. तब मेरी ड्रैस बुरी कैसे हुई?’’


मौसी तिलमिला कर रह गई थीं. सुजाता दिनपरदिन पहले से ज्यादा ही स्मार्ट लगने लगी थी, मेकअप तो नाममात्र का करती थी पर अपने पसंदीदा ब्रैंडेड कपड़े और रंगीन चश्मा पहन कर जब

भी निकलती थी, उसे देख कर कोई भी 30 साल से ज्यादा की नहीं सोचता था.

सुजाता ने फाइनल ईयर में पहुंचतेपहुंचते जीआरई और टोएफेल टैस्ट्स में अच्छे स्कोर्स हासिल कर लिए थे. ये दोनों टेस्ट्स अमेरिका में आगे की पढ़ाई के लिए जरूरी होते हैं. उस ने अमेरिका की कुछ प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में पीएचडी के लिए अप्लाई भी कर दिया था.

अब सुजाता ने एमएससी पूरी कर ली थी. अपनी पढ़ाई और अन्य सामाजिक कार्यों से उस ने यूनिवर्सिटी और बनारस शहर में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी.

अमेरिका की अच्छी यूनिवर्सिटीज से स्कौलरशिप के साथ पीएचडी का औफर भी मिल गया था, जिन में कैलिफोर्निया की बर्कले और स्टैनफोर्ड भी थीं. उस ने स्टैनफोर्ड जाने का फैसला लिया था. उसे एफ-1 स्टूडैंट वीजा भी मिल गया था. बेटी रेणु तो अमेरिकन नागरिक थी ही, उसे अमेरिका जाने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं थी.

सुजाता के पिता ने अमेरिका जाने के पहले उस से कहा, ‘‘बेटी, एक बार फिर से सोच लो. तुम अमेरिका में अकेले रह सकोगी? मुझे तुम्हारी और रेणु की सुरक्षा की चिंता है.’’

वह बोली, ‘‘पापा, आप को शायद मालूम नहीं है, महिलाओं के लिए अमेरिका बहुत ही सुरक्षित देश है. और अब तो रेणु भी समझदार हो गई है. अमेरिका में तो हजारों सिंगल मदर्स मिलेंगी. उन्हें कोई हेयदृष्टि से नहीं देखता. आप यहां चैन से रहिए. आप की बेटी अब इस काबिल हो गई है कि अपनी और रेणु की देखभाल भलीभांति कर सकती है.’’

अगस्त के अंतिम सप्ताह में सुजाता और रेणु अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत के सैन फ्रांसिस्को हवाई अड्डे पर उतरी थीं. वहां से टैक्सी ले कर पालो आल्टो पहुंच गई थीं. वहीं पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी है. वहां आने के पहले सुजाता ने एक रूम का अपार्टमैंट इंडिया से ही बुक कर लिया था. उस ने प्रसिद्ध एस्ट्रोफिजिसिस्ट के मार्गदर्शन में अपना शोध शुरू किया. उस के गाइड उस की प्रगति पर बहुत खुश थे.


बेटी रेणु भी स्कूल जाने लगी थी. सुबह यूनिवर्सिटी जाते समय उसे स्कूल में छोड़ देती थी और लौटते समय ले लेती थी. कभी लौटने में देर होने की संभावना होती तो उसे स्कूल में ही 2-3 घंटे एंक्सटैंडेड औवर्स में छोड़ देती थी. अमेरिका में ज्यादातर पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं, तो उन के छोटे बच्चों के लिए स्कूल में अकसर यह सुविधा होती है.

देखतेदेखते 5 साल गुजर गए थे. उस ने अपनी थीसिस सबमिट कर दी थी जिस में सौरमंडल के ग्रहों के बारे में अतिरिक्त दुर्लभ जानकारियां थीं. उस की थीसिस को अमेरिका के अतिरिक्त अन्य कई देशों की साइंस मैगजींस में प्रकाशित किया गया था. सब ने इस थीसिस की सराहना की थी.

सुजाता एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी डिग्री प्राप्त कर अब डा. सुजाता थी. स्टैनफोर्ड में भी उस ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा था. पढ़ाई के अतिरिक्त वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भारतीय व अमेरिकी उत्सवों में भाग लेती थी. दीक्षांत समारोह के अवसर पर सुजाता ने अपने पिता को भी अमेरिका बुलाया था. वे भी अपनी बिटिया की संघर्षमय सफलता पर प्रसन्न थे.

इस दौरान एक भारतीय विधुर ने सुजाता को प्रोपोज किया था. उस ने अपने पिता से पूछा भी था. रेणु से भी चर्चा की थी. दोनों को कोई आपत्ति न थी. पिता को तो खुशी होती अगर सुजाता का घर फिर बस जाता.

वह एक बार उस विधुर के साथ डेट्स पर भी गई थी, परंतु यह एक औपचारिकताभर थी उस व्यक्ति का स्वभाव और विचार परखने के लिए. सुजाता को यह प्रपोजल स्वीकार नहीं था. उस को लगा कि यह व्यक्ति रेणु का सौतेला पिता बनने के योग्य नहीं था. इस के बाद उस के पास फिर कभी शादी की बात सोचने की फुरसत भी नहीं थी.

पीएचडी करने के दौरान ही सुजाता को नासा से एस्ट्रोफिजिसिस्ट साइंटिस्ट का औफर मिल चुका था. उसे मोफेट कील्ड, कैलिफोर्निया में स्थित नासा के रिसर्च सैंटर में पोस्ट किया गया था. सुजाता को उस की विशिष्ट उपलब्धियों के आधार पर ग्रीन कार्ड आसानी से मिल गया था. अब वह अमेरिका की स्थाई निवासी थी.

इस बीच, उस के पूर्व पति अतुल को भी अपनी पूर्र्व पत्नी की उपलब्धियों की जानकारी मिल चुकी थी. अमेरिकन लड़की से शादी के बाद उसे भी ग्रीन कार्ड मिल गया था. एक दिन उस ने सुजाता को फोन किया था. परंतु सुजाता ने उस को कोई तवज्जुह नहीं दी थी. उस ने मात्र इतना ही कहा, ‘‘हम मांबेटी दोनों बहुत खुश हैं, अब आगे हमारी जिंदगी में दखल न देना.’’ और फोन काट दिया था.

इधर अतुल की अपनी नई अमेरिकन बीवी के साथ निभ नहीं रही थी. उस की बीवी ने ही तलाक की अर्जी कोर्ट में दे रखी थी जो 6 मास होतेहोते मंजूर भी हो गई थी. अतुल को आधी संपत्ति उस अमेरिकन को देनी पड़ी थी.

सुजाता की बेटी रेणु करीब 15 साल की हो चली थी. वह भी कैलिफोर्निया की जूनियर चैस चैंपियन थी. एक बार फिर अतुल ने सुजाता से फोन कर मिलने की इच्छा व्यक्त की थी. पहले तो वह नहीं मान रही थी, पर उस के बारबार के आग्रह पर रविवार को सुबह मिलने को कहा. सुजाता ने रेणु को भी सारी सचाई बता दी थी, हालांकि, अतीत की कुछ बातें रेणु को अभी भी याद थीं.


डा. सुजाता ने सैन होजे में बड़ा घर खरीद लिया था. अतुल रविवार को सुजाता से मिलने पहुंचा था. रेणु ने स्नैक्स और जूस ला कर सामने टेबल पर रखा था.

रेणु को सामने देख कर अतुल बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘इधर आओ बेटी, मैं तुम्हारा पिता हूं.’’

सुजाता ने उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘गलत. बिलकुल गलत. तुम उस के पिता थे. अब नहीं रहे.’’

अतुल बोला, ‘‘सौरी. पर क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते? जब जागो तभी सवेरा.’’

सुजाता बोली, ‘‘याद करो, परदेश में तुम ने मुझे बेसहारा समझ सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया था. मैं तो कभी सोई ही नहीं. हमेशा जगी और सचेत थी. हां, तुम जाग कर भी सोए हुए थे. जगे हुए को जगाया नहीं जाता है.’’

अतुल बोला, ‘‘मुझे तुम से तलाक लेने का अफसोस है. पर क्या फिर हम मिल नहीं सकते?’’

सुजाता ने कहा, ‘‘तुम अभी तक 2 बीवियों से तो निभा नहीं सके हो. तुम पर कोई मूर्ख लड़की भी भरोसा नहीं करेगी, मेरा तो सवाल ही नहीं उठता.’’

अतुल बोला, ‘‘एक बार फिर से सोच लो. आखिर, रेणु को भी पिता का संरक्षण मिल जाएगा.’’

सुजाता बोली, ‘‘अब तुम इतने दिनों

से अमेरिका में रह कर भी

बेवकूफी वाली बात कर रहे हो. यहां लड़कियां और औरतें बहुत सुरक्षित हैं. तुम तो कंप्यूटर इंजीनियर हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं जहां भी रहूं, सैलफोन में ऐप्स के द्वारा रेणु और घर पर बराबर नजर रख सकती हूं. वैसे, हम दोनों अपने बल पर अपनी रक्षा कर सकते हैं. तुम्हारे जैसे कमजोर मर्द क्या सुरक्षा देंगे? तुम अपनी फिक्र करो. हो सकता है, तुम्हें किसी औरत का संरक्षण चाहिए.’’


अतुल बोला, ‘‘एक बार रेणु से भी पूछ लो, उसे पिता नहीं चाहिए?’’

सुजाता ने रेणु से पूछा, ‘‘क्यों बेटे, मिस्टर अतुल को क्या जवाब दूं?’’

रेणु बोली, ‘‘मेरी मम्मीपापा दोनों आप हो मौम. हम दोनों में इतनी

शक्ति और क्षमता है कि किसी तीसरे की कोई गुंजाइश नहीं है हमारे बीच. मिस्टर अतुल से कह दो, कृपया चले जाएं.’’

सुजाता अतुल की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हें जवाब चाहिए था, मिल गया न. नाऊ, यू कैन गो. और कभी नारी को अबला समझने की भूल भविष्य में न करना.’’

अतुल बिना कुछ बोले सुजाता के घर से निकल पड़ा था.  द्य

ऐसा भी

होता है

बात पुरानी है. हमें हिमाचल प्रदेश के किसी गांव में किसी शादी में जाना था और वह गांव मुख्य सड़क से काफी अंदर जा कर था.  बस से हम शाम ढले उस जगह पहुंचे जहां से हमें मुख्य सड़क से गांव की ओर पैदल जाना था लेकिन जब बस से उतरे तब बाहर बहुत तेज वर्षा हो रही थी.


अब गांव जाएं तो कैसे जाएं, यही सोचतेसोचते हम परिवार समेत सड़क किनारे स्थित एक छप्परनुमा दुकान की छत के नीचे खड़े हो गए.

दुकान में बैठे एक बुजुर्ग शायद हमारी समस्या को भांप गए थे. उन्होंने हमें बड़ी विनम्रता से छप्पर के अंदर आने को कहा सो हम अंदर चले गए और वहां पर बने एक चबूतरेनुमा बैंच पर बैठ गए.

उन दिनों मोबाइल भी नहीं होते थे इसलिए गांव में सूचना देना भी संभव नहीं था. उधर वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी.

बातों ही बातों में रात हो गई और सब भूख से बेहाल होने लगे. हमारी स्थिति भांप कर वही बुजुर्ग बोले, ‘‘मैं तुम्हारे सब के लिए खाना बना देता हूं, खाना खा कर तुम सब इसी छप्पर के नीचे सो जाना क्योंकि बारिश तो बहुत तेज हो रही है. थमने का नाम नहीं ले रही. लगता है  सुबह तक होती रहेगी. ऐसे में तुम्हारा निकलना संभव नहीं. उन्होंने शायद हमारे मन की बात कह दी थी सो सब ने यह सोच कर चुपचाप उन की बात मान ली कि सुबह चलते समय हम उन को खाने का और ठहरने का दाम दे देंगे. इतना कुछ हमारे लिए कर रहे हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि उन की पैसे से मदद करें.

हम ने भरपेट खाना खाया और थकावट के कारण हमें झट से नींद आ गई. सुबह सो कर उठे तो देखा बारिश भी रुक गई थी तो हम ने सामान उठाया और उन बुजुर्ग को पूरी व्यवस्था के दाम पूछे.

पलट कर बुजुर्ग बोले, ‘‘बेटा यह सब व्यवस्था मैं ने पैसे के लिए नहीं की थी बल्कि इंसानियत के नाते की थी. इस दाने पर तुम्हारा नाम था सो तुम ने खाया.’’

यह सुनते ही मैं ने बुजुर्ग के चरण पकड़ लिए. मैं ने उन्हें कुछ तो पैसे लेने को कहा लेकिन उन्होंने एक पैसा नहीं लिया और यह सोचता चला आया कि दुनिया में इंसानियत अभी जिंदा है.

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