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पिता 10वीं फेल और मां सिर्फ 5 तक पढ़ी...बेटा डिप्टी जेलर बना, दोस्तों के नोट्स से की पढ़ाई

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, आजमगढ़. 10 बाई 12 का कमरा। एक कोने में अलमारी है, जो किताबों से भरी है। दूसरी तरफ किचन है। जिसका दायरा 3 बाई 3 फीट का होगा। छोटे डिब्बों में मसाले, चायपत्ती और चीनी रखी है। उससे बड़े डिब्बों में चावल और दाल। कुंदन करीब 8 सालों से ऐसे ही कमरों में रह रहे। 3 बार पीसीएस की प्री परीक्षा निकाली, लेकिन हर बार मेंस में फेल हो जाते। जब रिजल्ट आता, तो देखकर रोते। परिवार के लोग समझाते। दोस्त कहते- वंस मोर। कुंदन को हिम्मत मिलती और वह फिर से जुट जाते।
हर अंधेरे का अंत होता ही है। कुंदन की जिंदगी में मेंस की असफलता का अंधेरा खत्म हुआ। इंटरव्यू क्लियर हुआ और वह इस बार डिप्टी जेलर बन गए। यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। कई चुनौतियां आईं। लगा कि अब टूट जाएंगे, लेकिन हिम्मत बनी रही और लक्ष्य हासिल हुआ।
पीसीएस में सफल हुए लोगों की कहानी सीरीज में आज कुंदन की असफलता से सफलता की कहानी एक क्रम में पढ़ते हैं…
पिता 10वीं फेल और मां सिर्फ 5 तक पढ़ी
कुंदन का जन्म आजमगढ़ जिले के ऊंचा गांव में हुआ। पिता शिव प्रसाद पेशे से किसान हैं। 10वीं में फेल होने के बाद उन्होंने आगे पढ़ाई नहीं की, लेकिन पढ़ाई के महत्व को बखूबी समझते थे। मां मानकी भी सिर्फ 5वीं तक ही पढ़ी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि कुंदन को शुरुआत से अच्छे स्कूल में पढ़ाया जा सके, क्योंकि 3 भाई-3 बहन और भी थे। कमाई का जरिया खेती ही थी। बाद में एक भाई की नौकरी आर्मी में लगी, तो परिवार की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ।
कुंदन मीडिया से बताते हैं कि चौथी क्लास तक मैं गांव के ही एक स्कूल में पढ़ा था। उस वक्त करीब 50 रुपए महीने फीस थी। इसके बाद थोड़ी दूर पर चिल्ड्रन एकेडमी थी, पिता जी ने उस स्कूल में एडमिशन करवा दिया। 12वीं तक वहीं पढ़े। शुरुआत से ही देश-दुनिया में जो हो रहा, उसमें इंटरेस्ट रहता था। इसलिए स्कूल जाते वक्त जो दुकानें पड़ती थी, वहां अखबार पढ़ते थे। उस वक्त घर पर अखबार नहीं आता था। घर से कुछ दूर पर रोडवेज जाते थे, वहां 5 रुपए में 'आज का प्रतियोगी' नाम की मैगजीन मिलती थी। उसमें यूपीएससी में चयनित लोगों का इंटरव्यू होता था, पढ़कर अच्छा लगता था।
10 बाई 12 का कमरा, महीने का खर्च मिलता 3000 रुपए
कुंदन ने 2014 में मैथ्स-फिजिक्स-केमिस्ट्री सब्जेक्ट के साथ 12वीं पास किया। इसके बाद इलाहाबाद चले आए। बेली कछार इलाके में 10 बाई 12 फीट का एक रूम लिया। घर से 3000 रुपए महीने मिलते थे। उसी में किराया देना होता। साथ ही अपना खाने-पीने और किताब-कॉपी का खर्च भी मैनेज करना होता था। कुंदन ने मैथ्स-फिजिक्स की पढ़ाई की थी, लेकिन इलाहाबाद में उन्होंने बीए को चुना। कहते हैं कि स्कूल में मैंने वो पढ़ लिया, लेकिन मेरा मन हमेशा से इतिहास-भूगोल और राजनीति शास्त्र की तरफ था इसलिए यही चुना।
2017 में कुंदन ने बीए पूरा कर लिया। वह तैयारी करने के लिए दिल्ली चले गए। लेकिन 1 महीने ही बीता था कि लिम्फ नोड्स ट्यूबरक्लोसिस का शिकार हो गए। वहां इलाज करवाया, लेकिन फायदा नहीं मिला। मजबूरन वापस आजमगढ़ आ गए। यहां इलाज चला और ठीक हुए। कुंदन दोबारा दिल्ली गए। परिवार के लोग हर महीने 10 हजार रुपए भेजते थे, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि हर बार इतना पैसा भेज पाना संभव नहीं रहा। कुंदन को यह एहसास हुआ, तो वह वापस प्रयागराज लौट आए और यहीं रहकर तैयारी शुरू की।
3 बार मेंस में फेल, चौथी बार तो प्री भी नहीं निकला
28 अक्टूबर, 2018 को कुंदन ने पहली बार पीसीएस की प्री परीक्षा दी। परीक्षा का सेंटर आजमगढ़ पड़ा। रिजल्ट आया, तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि प्री परीक्षा में वह पास हो चुके थे। मेंस की तैयारी में जुटे। परीक्षा दी, लेकिन नतीजा निराश करने वाला था। कुंदन हारे नहीं। जुटे रहे। फिर से प्री परीक्षा दी और दोबारा भी पास कर लिया। मेंस में पहले से ज्यादा तैयारी करके बैठे, लेकिन नतीजा नहीं बदला। इस बार रिजल्ट आया तो कुंदन की आंखों से आंसू निकल आए। दोस्तों ने समझाया कि लगे रहिए।
कुंदन ने लगातार तीसरी बार पीसीएस की परीक्षा दी। प्री फिर से क्लियर कर लिया। लेकिन मेंस में फेल होने वाली समस्या बनी रही। इस बार फेल हुए, तो टूट गए। समझ ही नहीं आ रहा कि तीन बार एक ही स्टेज पर जाकर फेल कैसे हो जा रहे? कुंदन के जीवन का यह कठिन वक्त था। लेकिन परिवार और दोस्तों का भरोसा बरकरार था। उन्हें लगता था कि कुंदन एक दिन जरूर अधिकारी बनेंगे।
कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए दोस्तों के कोचिंग नोट्स पढ़े
कुंदन को तैयारी करते हुए करीब 8 साल बीत गए। घर से पैसे तो मिलते, लेकिन यह सवाल भी आता कि ऐसा कब तक चलेगा? कुंदन परिवार की परिस्थिति समझते थे, इसलिए उतने ही पैसे मांगते जितने में काम चल जाए। 4 बार पीसीएस की परीक्षा में फेल हो चुके थे। उन्हें लग रहा था कि कोचिंग करना चाहिए, ताकि उन प्वाइंट्स पर काम किया जा सके जिसमें वह लगातार पिछड़ रहे। लेकिन कोचिंग के लिए 1 से डेढ़ लाख रुपए लगते थे। इतना पैसा उनके पास नहीं था।
कुंदन कहते हैं, घर से अगर पैसे मांगता तो पिता जी खेत वगैरह इधर-उधर करके भेजते ही। लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि इतना पैसा मांग लूं। इसलिए जो दोस्त कोचिंग करते थे उनसे नोट्स, पीडीएफ और उनके स्टडी मटेरियल का आईडी-पासवर्ड ले लेता था। उसी के जरिए पढ़ता था। बाकी जो साथी थे, वह भी सपोर्टिव थे, चीजों को बेहतर तरीके से बताते थे।
कुंदन ने खुद को तैयार किया। पांचवी बार परीक्षा में बैठे। इस बार प्री निकला, तो थोड़ी-सी राहत मिली। मेंस की मन लगाकर तैयारी की। मेंस भी पास कर गए। इंटरव्यू में पहुंचे। आत्मविश्वास बढ़ा था, पैनल के आगे बैठे और हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया। नतीजा आया, तो इस बार सब कुछ बदल चुका था। क्योंकि कुंदन सिंह डिप्टी जेलर बन चुके थे। परिवार खुशी से झूम रहा था। वर्षों की असफलता सफलता में बदल चुकी थी।
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